दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Tuesday, November 24, 2009

विश्वास पाना अभी शेष है

चूरू।शहरवासियों ने शहरी सरकार चुन ली। चुनाव नतीजों के रूप में लोकतंत्र के इस महायज्ञ की पूर्णाहुति हो गई। नतीजे सबके सामने हैं। अपनी सरकार चुनने में शहरवासियों ने पूरा श्यानापन दर्शाया। अपनी सूझबूझ और परिपक्वता का परिचय दिया। तुम जीते न मैं हारा की तर्ज पर सटीक फैसला सुनाया। जनता के मन मंदिर से कोई छिटका तो किसी ने प्रसाद पाया। चुनावी वैतरणी पार करने की जद्दोजहद में जुटे पैंंतालीस वार्ड प्रत्याशियों में से बाईस का जनता ने हाथ थाम लिया तो बीस के हाथों में कमल का फूल थमा दिया। जिन तीन वार्डों में निर्दलियों ने जनता का आशीर्वाद पाया वे व्यवहार और व्यक्तित्व के धनी थे। निवर्तमान सभापति रमाकांत ओझा को तो जनता के दरबार से धक्का लगा। गोविन्द महणसरिया ने प्रसाद पा लिया।जनता जनार्दन की यही खासियत है। यही लोकतंत्र की मजबूती। जनता कब किसी को तख्तेताज सौंप दे कब किसी के पैर के नीचे बिछी जाजम खींच ले। कांग्रेस से सभापति पद के उम्मीदवार गोविन्द महणसरिया का निर्वाचन कुछ ऐसा ही रहा। कांग्रेस के सिपाही के रूप में उनकी वर्षों की साधना का उन्हें प्रसाद मिल गया। शहरवासियों के लिए वे एक ऐसी शख्सीयत बनकर उभरे जिसे लेकर स्वयं उनकी जमात के लोग आशंकित थे। टिकट वितरण को लेकर उपजे असंतोष ने बाजार में उनकी हवा बिगाड़ रखी थी। रही सही कसर बागियों के रूप में चुनाव मैदान में ताल ठोकने वालोंं ने पूरी कर दी थी। इस बार राज योग उनकी ही हथैली पर लिखा था। इसी लिए हाजी मकबूल को गोविन्द कबूल था। मकबूल का मतलब होता है जो अच्छा उसे ग्रहण करो। गोविन्द के नाम की तो जनता वैसे ही दीवानी है। उसे कबूल करने में जनता ने जरा भी भूल नहीं की। गोविन्द महणसरिया को जनता ने ठीक वैसे प्रसाद पकड़ाया जैसे मंदिर में लगी भीड़ में सबसे पीछे खड़े किसी भक्त का भगवान ने स्वयं उठकर हाथ थाम लिया हो। यह महणसरिया के लिए तो विचारणीय है ही, जनता का पुन: विश्वास पाने से पिछड़े रमाकांत ओझा के लिए चिंतन और मंथन का विषय भी।पर कहते हैं कि राजनीति में भगवान रूपी जनता भी उसी भक्त का साथ निभाती है जो कर्म में विश्वास करता है। दीनहीन-गरीब पर उपकार करता है। निशक्त और असहायों को सम्बल देता है। कत्र्तव्यों को समझता है और दायित्वों को निभाता है। जो राम और रहीम को बराबर का दर्जा देता है। जिसकी करनी और कथनी में भेद नहीं होता। जिसके आचरण में शुद्धता और चरित्र में स्वच्छता बसती है। जिसकी वाणी में मिठास और व्यवहार में सौम्यता रमती है। जो हर खास और आम के सुख-दुख में उसके साथ होता है। जो अपने और पराए में भेद किए बिना घर-परिवार, मोहल्ला और समाज, राज्य और राष्ट्र धर्म की पालना करने में संतुलन बनाए रखता है।शहर के प्रथम नागरिक के रूप में चुने जाने पर गोविन्द महणसरिया की तथा वार्ड प्रतिनिधि चुने जाने पर प्रत्येक पार्षद की अगले पांच वर्षों के लिए यही भूमिका होनी चाहिए। जनता का मत तो उन्हें मिल गया। विश्वास पाना अभी शेष है।

Monday, November 23, 2009

शहर से प्रेम दर्शाओ

सन्तोष गुप्ता
चुनाव प्रचार का शोर-शराबा थम गया है। भौंपुओं का मुंह बंद हो गया है। सभाओं की जोड़-तोड़ घट गई है। रैलियों की दौड़-धूप मिट गई है। कार्यकर्ताओं का रूठना-मनना लगभग खत्म सा हो गया है। दोस्त-दुश्मनों में मान-मनौव्वल का दौर भी पट गया है। मनाने वाले थके से दिखाई देने लगे हैं। मानने वाले कम ज्यादा ले-देकर मान गए हैं। उम्मीदवारों ने गंभीरता ओढ ली है। चाल-चलन में शालीनता ढाल ली है। उनके चेहरे की मुस्कान समर्थकों की भीड़ के अनुपात में घटने-बढऩे लगी है।
इसका एक कारण यह भी है कि मतदाता ने उम्मीदवार को जान लिया है। उम्मीदवारों ने समर्थकों को पहचान लिया है। जिसको जो कहना था उसने वह कह लिया है। जिसे जो सुनना था उसने वो सुन लिया है। अब किसी के पास न गिले शिकवे रहे न शिकायत बची है। सिर्फ शहर से प्रेम का इजहार बाकी है। सोमवार को मतदान के मद्देनजर उलटी गिनती शुरू हो गई है।शहरवासियों के लिए शहर से प्रेम के इजहार का समय आ गया है। कहते हैं प्रेम को शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। प्रेम को अनुभूत किया जाता है। प्रेम के परिपक्व होने की कामना की जाती है। शहरी समस्याओं से निजात और शहर के विकास की खातिर शहर से प्रेम करने वालों के लिए २३ नवम्बर का दिन किसी 'वेलेंटाइन-डेÓ से कम नहीं है। उन्हें यह सुनहरा मौका यूं ही नहीं गंवाना है। घर से मतदान केन्द्र की दूरी चाहे जितनी हो, सर्द हवाएं चाहे खूब ठिठुराएं, पारिवारिक परेशानियां कदम रोकें पर शहर से प्रेम का इजहार करने से ठिठकना नहीं है। निर्भिकता से घर से निकलना है और एक नहीं एक साथ दो को चुनना है। अब तक मतदाता अपने वार्ड के प्रतिनिधि को चुनता था। फिर वह प्रतिनिधि अपने नेता को चुनता था। इस बार मतदाता शहर के प्रथम नागरिक और वार्ड प्रतिनिधि दोनों का चुनाव एक साथ करेगा। इसलिए मतदाता की दोहरी जिम्मेदारी हो गई है। उसे चौंकन्ना रहना होगा। सोचना समझना और फिर चुनना होगा।अब तक जो हुआ वह सामान्य था। इसमें नया कुछ भी नहीं। ऐसा पहले से होता आया है। लेकिन अब जो भी कुछ होगा वह दोनों के लिए खास रहेगा। उसके लिए जिसे चुना जाना है, विशेष है ही। जिन्हें अपने शहर के विकास के खातिर योग्य नेता चुनना है, उनके लिए कुछ ज्यादा विशेष है। उन्हें तो चौतरफा सजगता और सतर्कता बरतने की जरूरत होगी। अगले चौबीस घंटों में जिसे चुना जाना है वह अपने समर्थकों को और समर्थक अपने मिलने-जुलने वालों को रिझाएंगे। उनका मत पाने को उन्हें ललचाएंगे भी। घर-घर देवरियां ढोक लगाएंगे। रिश्ते-नाते गिनाएंगे। पुरानी दोस्ती भुनाएंगे। गाहे-बगाहे किए अहसान याद दिलाएंगे। सौगात और भेंट भी दी जा सकती है। पंगत में लंगर और बस्ती में बक्से बांटे जा सकते हैं।
यही वह स्थिति होगी जब मतदाता अवसरवादियों की बनाई हवा में बह सकता है। क्षणिक लाभ और मोह में बिक सकता है। प्रत्याशी के लुभावने वादों और शहद लिपटी बातों में जकड़ सकता है। मतदाता को विचार करना होगा कि उसकी जरा सी भूल न सिर्फ उसे बल्कि शहर को पांच साल तक भुगतनी पड़ सकती है। शहर से प्रेम में दीवाना हुआ जा सकता है, प्रेम में अंधा बना जाए यह शहर को गंवारा न होगा।

आओ चुन लें खुद को

स्थानीय निकाय चुनाव का बिगुल बज गया है। राजनीतिक सरगरर्मियां बढऩे लगी है। गली-मोहल्ले, नुक्कड़-चौपाल, सड़क-बाजार हर ओर चुनावी रंगत जमने लगी है। राजनीति में वर्षों से रमे और राजनीति में रमने के इच्छुक आपस में जुडऩे लगे हंै। चाय की थड़ी हो या कलेक्ट्री के बाहर लगा दाल-पकोड़ी का ठेला। चुस्की और चटकारे के साथ हर कोई चुनावी चर्चा में रमा है। धवल वस्त्र पहने जहां-तहां नमस्कार की मुद्रा में खड़े दिखाई देने वालों पर तो टिप्पणियां होने लगी हैं। कै...भाईजी थे भी लडरिया हो कै...कठे सूं.... ऐसी आवाज तथाकथित नेताजी के कानों में पड़ते ही उनके चेहरे की मुस्कराहट दोगुनी हो जाती है। टिप्पणी करने वाला उनका आलोचक है कि समर्थक, निन्दक है कि शुभचिंतक वे नहीं जानते। वो तो बेशक मुस्कुरा के आगे बढ़ गए, टिप्पणी करने वाले के लिए बात यहां खत्म नहीं हुई बल्कि यहां से शुरू हो गई। चाय की थड़ी पर बैठे-बैठे नेताजी का भूत-भविष्य और वर्तमान पढ़ा और गढा जाने लगा। सम्भवत: वे यह भूल गए कि धवल वस्त्रधारी ने तो खुद को समाज के लिए प्रस्तुत कर अपने साहस और समर्पण का सद्भाव पूर्ण प्रदर्शन भर किया है। उसे नेता बनाना या न बनाने का अधिकार तो उन्हीं के हाथ में है। खैर, यह मानवीय स्वभाव है। इसे न रोका जा सकता है न टोका जा सकता है। लोकतंत्र की व्यवस्था ही कुछ ऐसी है। यहां खुद कुछ करो या ना करो। सामने वाले पर टीका-टिप्पणी करो या सराहना आपके विचार अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की हर हाल में रक्षा होगी। चूरू के लिए यह उत्थान का समय है। उठने का समय है। जागने का समय है। न सिर्फ जागने का बल्कि जागते हुए भविष्य संवारने का समय है। इसे जिला मुख्यालय का दर्जा भले ही दशकों पूर्व मिल गया हो पर जिला मुख्यालय होने का सा गौरव वह अब तक नहीं पा सका है। चूरू में निसंदेह काफी विकास हुआ, यह कोई नहीं नकारता। फिर भी अन्य जिलों से चूरू पिछड़ा हुआ है, यह हर कोई स्वीकारता है। बमुश्किल एक साल हुआ जबकि चूरू को यहां की आबादी और विकास के मद्देनजर नगरपालिका से नगरपरिषद में क्रमोन्नत किया गया। नगरपरिषद का दर्जा पाकर शहरवासियों की उम्मीद जागी। अपेक्षाएं बढ़ीं। चूरू को अन्य शहरों सा दिखने और देखने की तमन्ना हुई। लेकिन बीते साल में शहर की फिजां और फितरत कितनी बदल पाए? कितने नेता और नौजवान इसके लिए आगे आए। मूलभूत सुविधाओं के अभाव और अभियोगों पर किसने आवाज उठाई? चूरू में क्या-क्या नया जोड़ पाए? गंदे पानी की निकासी की समस्या दूर होना तो दूर क्या उसके निराकरण की ठोस योजना भी बना सके। सड़कों का समतलीकरण भले न कर सके हो क्या गुणवत्ता पूर्ण एक भी सड़क बना सके। पीने के पानी का एकत्रीकरण और शुद्धिकरण की क्या किसी ने सुध ली। शहरी सौंदर्यीकरण और पर्यावरणीय अनुकूलन की दृष्टि से ठोस कचरा प्रबंधन का कभी विचार किया। सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक समृद्धता की कभी पहल हुई। रोजगार और औद्योगिकीकरण पर किसने कितना ध्यान दिया। खेत और खलिहानों का क्या क्षमतानुकूल उपभोग हो सका।... देखलेस्यां...... करलेस्यां.... होजासी.....कीहोसी....के बंटै....जैसे जुमले जुबान से निकले और जेब में पड़ी गुटखे की पुडिय़ा मुंह तक पहुंची...हो गया बस।...मुंह बंद।सेठ, साहूकारों, धनपतियों की पुश्तैनी इमारतों और हवेलियों के होने, साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने, अतीत पर ही मुस्कराते रहने से ही कुछ होता तो गुजरे बरसों में बहुत कुछ हो जाता। जिस शहर की कारोबारी हलचल आज भी गधा रेहडिय़ों पर घिसट रही हो, नौजवान अच्छा पढऩे-लिखने को पड़ोसी जिले की ओर झांकते हों और रोजी-रोटी कमाने विदेश पलायन कर जाते हों, जहां एक प्याली चाय और ऑटो में शहरभर में कहीं भी आने-जाने का खर्च एकसा मात्र पांच रुपल्ली हो, जहां सूर्य अस्त होते ही व्यापारी कारोबार समेटने लगते हों, मजदूर औजार छोड़ देता हो और रेहड़ी वाला पशु खोल देता हो वहां की दिशा और दशा बदलने के लिए निश्चित ही कोई कर्मवीर और धर्मवीर चाहिए। विशेष तौर पर उस दौर में जबकि आधी दुनिया को राजनीति में पंचायती करने का आधा हक मिल गया है। खास तौर पर तब जबकि सभापति और पालिकाध्यक्ष का चयन सीधे आमजन को करना है। चाय और पकोड़ी के साथ थडिय़ों पर बैठकर बतियाने और हथेली पर तम्बाकू चुर्रट रगड़ते रहने का वक्त अब नहीं रहा। समय करवट ले रहा है। आप भी उठ खड़े हों। आंखें खोलें। कुछ कर गुजरने को हाथ-मुंह धोलें। कैसा चूरू चाहते हैं आप? किससे मेल खाता है आपका विचार? किसके पास है आपकी कल्पना को साकार करने की क्षमता? कौन दे सकता है आपको सही नेतृत्व? मतदान का दिन २३ नवम्बर पलक झपकते आ जाएगा। किसी और को चुनने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करें उससे पहले जरूरी है कि आप खुद को चुनें। किसके पक्ष और समर्थन में आप खुद को खड़ा देखना चाहते हैं। किसे अपना तन-मन-धन से समर्थन देना चाहते हैं। किसके हाथों में शहरी विकास की डोर सौंपना चाहते हैं।आपके दर पर कर्मवीर, धर्मवीर, धनवीर, बलवीर आदि चुनावी रणवीरों की अब शुरू होगी दस्तक। चूरू आपका है। चुनना आपको है। निर्णय आपका है।

Monday, November 9, 2009

माळा पेरावो, पगळया करवावो

मंत्रीजी का स्वागत, मास्टरजी की आफत
संतोष गुप्ता

चूरू, 9 नवम्बर। सुशासन और संवेदनशील सरकार से राहत की आस ग्रामीणों के गले की फांस बन गई है। सरकार में कृषि एवं पशु पालन मंत्री हरजीराम बुरड़क का अपने ही गृह क्षेत्र के गांवों में पगफेरा ग्रामीणों पर भारी पडऩे लगा है। 'नोटां री माळा पेरावो, मंत्री का पगळया करवावोÓ जैसा जुमला हर खास और आम ग्रामीणों की जुबान पर चढऩे लगा है।

सूखे और अकाल से जूझ रहे ग्रामीण अपने पेट पर पट्टी बांध कर गांव के भले की आस में मंत्री को नोटों का हार पहनाने पर मजबूर हैं। मोटे तौर पर दिखाई देने वाली ग्रामीणों की इस मजबूरी में क्षेत्र के चंद अवसरवादी लोगों का भी स्वार्थ है। आगामी पंचायतीराज चुनाव के मद्देनजर वे जहां ग्रामीणों पर अपना रुआब बना रहे हैं वहीं मंत्रीजी पर अपना प्रभाव जमा रहे है।

हैरत की बात है कि गांव के बुजुर्ग ग्रामीण अवसरवादियों की इस फितरत को समझते हैं फिर भी अपने घर-परिवार में अमन चैन की खातिर उनके इशारे पर चलते हैं। रविवार को ही मंत्रीजी का लाडनूं तहसील के चार गांवों का दौरा ग्रामीणों पर लाखों का पड़ा। मंत्री बुरड़क मालगांव, गेनाणा, रताऊ और सिकराली गांव में भले ही ग्रामीणों के अभाव-अभियोग सुनने के बहाने गए हों पर लौटे तो उनके गले में करीब तीन लाख चवालीस हजार एक सौ एक रुपए के गांधी छाप नोटों की माला थी। आश्चर्य किन्तु सत्य है कि ग्रामीणों को मंत्रीजी के गले में नोटों का हार डालने की जितनी खुशी हुई उससे ज्यादा उनके लौटने पर मलाल हुआ।

मंत्रीजी ने गांव के विकास की कोई घोषणा करने के बजाय उनकी उम्मीद पर यह कह कर पानी फेर दिया कि वे कहने में नहीं कर के बताने में विश्वास रखते हैं। लाडनूं तहसील के सबसे बड़े गांव रताऊ में बुरड़क का ग्रामीणों ने जोरदार स्वागत किया। यहां उन्हें सर्वाधिक दो लाख एक हजार एक सौ एक रुपए की माला पहनाई गई। वहीं मंत्री पुत्र जगन्नाथ बुरड़क को इक्कीस हजार रुपए के नोटों की माला से नवाजा गया। ग्रामीण प्रेमाराम बिडिय़ासर, प्रभुराम बेड़ा, गणेशाराम बिडियासर, रामसुख राड, रूपाराम बावरी तथा रामचंद्र भाखर ने बताया कि दो लाख घाल्या जद पगळया कराया।....इसू पेली ग्यारहा महीना सूं गांव वाळास्यूं रुख नहीं मिला रया हा....मंत्रीजी गांव वाळा सूं मुंह फेर बैठग्या...। ग्रामीणों को मलाल रहा कि पूरे लाडनूं तहसील में रताऊ गांव ही था जिसने बुरड़क को सर्वाधिक सत्तरह सौ मतों की बढ़त दिलाई थी। गांव वालों को उम्मीद थी कि मंत्री बनने पर वे खुद आकर ग्रामीणों का आभार व्यक्त करेंगे। किन्तु ऐसा हुआ नहीं। गांव के हर घर से रुपए एकत्र किए गए। स्कूल के मास्टरों ने रुपए दिए तब कहीं जाकर मंत्री जी का गांव में पगळया हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि बावरी कच्ची बस्ती में गंदे पानी की गेनाणी के निकास, स्कूलों में विषय अध्यापकों की नियुक्ति, चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार और गांव की सड़क निर्माण तथा मीठे के पानी की व्यवस्था कराए जाने की मंत्री से उम्मीद थी। आळ माला पहराई है....आगे देखस्यां....म्हाने...देखताने...अतराबरस हुईग्या...हालतक तो कांई...हुयो कोनी...। सड़क बनवााबा के वास्ते मंत्रीजी कहग्या वी के बन्वा की कई सालासूं सुणंरयां हां...अबे तक तो बणी कोणी...। ग्राम गेनाणा में बुरड़क को करीब इक्यावन हजार रुपए नकद राशि का लिफाफा भूराराम चोयल व सरपंच सहदेव डारा ने ग्रामीणों की ओर से भेंट किया। यहां मंत्री को समस्याएं सुनाने पहुंची महिला श्रमिकों को अनसुना किया गया। नरेगा श्रमिक भंवरी व पांची ने बताया कि वे अपनी समस्या बताना चाहती थी किन्तु उन्हें बोलने ही नहीं दिया गया। खींवाराम राड ने मंत्रीजी को भरी सभा में टोकते हुए कहा कि तुम्हारी बातें बहुत सुन ली है। इन श्रमिकों को सुनो जिन्हें तेरह-बीस रुपए मिल रहे हैं। इतना कहते ही मंत्री के साथ आए लोगों ने उसे बैठा दिया, बोलने नहीं दिया। बुरड़क ने इस गांव में सामुदायिक भवन बनाने की घोषणा की। यहां उन्होंने अपनी घोषणा में कहा कि ग्राम पंचायत पट्टïा देती हो तो वे वहां सामुदायिक भवन बनाने के लिए पांच लाख रुपए देगें। जोरदार पहलू यह है कि बुरड़क ने जिस स्थान के लिए पंचायत का पट्टïा मांगा वह जमीन पंचायत की है ही नहीं, वह गोचर भूमि है जहां पंचायत पट्टïा नहीं दे सकती। बुरड़क को गांव सिकराली में भी इक्यावन हजार रुपए व मालगांव में इक्कीस हजार रुपए की माला पहनाई गई।कईयों ने कर दिया राशि देने से मना मंत्री के दौरे पर स्वागत के लिए राशि देने से कई शिक्षाकर्मियों ने इंकार कर दिया। शिक्षकों ने नाम नहीं देने की शर्त पर बताया कि उनसे शिक्षा विभाग के ही एक अधिकारी और एक व्याख्याता ने इक्कीस सौ रुपए राशि मांगी थी। एक शिक्षक ने तो बताया कि उनके परिवार से तीन भाई शिक्षक हैं। तीनों से राशि मांगी गई किन्तु परिवार के हिसाब से राशि देकर पीछा छुड़ाया। एक विकलांग शिक्षक ने तो साफ तौर पर इस कार्य के लिए राशि देने से यह कहकर मना कर दिया कि जहां भी तबादला करवाना हो वहां करवा देना। गौरतलब है कि मंत्री के स्वागत के लिए रताऊ गांव से बाहर सेवारत शिक्षकों से भी राशि एकत्रित की गई।

मंत्रीजी .........लेणों ही सीख्या हैै.....। ग्राम रताऊ के बुजुर्ग ग्रामीण गणेशाराम बिडियासर व प्रभुराम बेडा आदि ने कहा कि मंत्रीजी देणों कौनी सीख्या है... लेणों ही सीख्या हैै... यही दो लाख रुपया गांव के मवेशियां के चारा और कच्ची बस्ती के गंदे पानी के निकासी के लिए बढ़ाकर दे देते तो गांव वालों को और खुशी होती। मंत्रीजी आज तक कदै ही माळा का रुपया वापस कौनी दिया....।

इनका कहना है...........

सूखा-अकाल, बिजली, पानी एवं मंहगाई से त्रस्त गरीब गांव वालों से नोटों की माला पहनकर कृषि मंत्री ने पारदर्शी संवेदनशील व जवाबदेह सरकार के कथनी और करनी में अन्तर को उजागर कर दिया। वे जब से मंत्री बनें हैं तब से अब तक करीब 30 लाख से अधिक रुपयों की माला स्वीकार कर चुके हैं और लाखों के चांदी के जग ग्रामीणों से पा चुके हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत यदि वाकई गरीब जनता के प्रति संवेदनशील हैं तो उन्हें अपने मंत्रिमंडल के इस साथी से हिसाब मांगना चाहिए और ये राशि सहायता कोष में जमा करानी चाहिए।

-एडवोकेट जगदीशसिंह, पूर्व उपप्रधान, पंचायत समिति, लाडनूं

पानी को प्यासे ग्रामीण और चारे को तरसते मवेशियों को राहत देने की बजाय कृषि मंत्री हरजीराम बुरड़क गरीब पशुपालकों और काश्तकारों की जमा पूंजी भी हजम कर रहे हैं। यदि सरकार की गरीब जनता व काश्तकारों के प्रति यही संवेदनशीलता है तो फिर मुझे कुछ नहीं कहना है।

-नाथूराम कालेरा, अध्यक्ष, भाजपा ग्रामीण मंडल, लाडनूं

कृषि मंत्री बुरड़क गांवों में अभाव-अभियोग सुनने के नाम पर दौरा कर ग्रामीणों से पिछले 11 महिनों से चौथ वसूली कर रहे हैं। ऐसे मंत्री को पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उनके स्वागत के लिए एकत्रित की जा रही राशि सरकारी कर्मचारी एवं अधिकारियों से ही संभव है। सरकार को चाहिए कि वे जनता को ऐसे मंत्रियों से भयमुक्त कराए।

-हनुमानमल जांगिड़, अध्यक्ष, भाजपा शहरी मंडल, लाडनूं

जनप्रतिनिधि का स्वागत होता रहा है, यह कोई नई बात नहीं है। हरजीराम बुरड़क के मंत्री बनने पर मैं भी उनके साथ कुछ गांवों में आयोजित सम्मान समारोह में गया था। मैनें तो मुझे पहनाई गई नोटों की माला में कुछ राशि और जोड़कर ग्रामीणों को लौटा दी थी मेरे सामने मंत्रीजी ने भी शायद ऐसा ही किया था। उसके बाद मैं कभी मंत्रीजी के साथ नहीं जा सका।

- रूपाराम डूडी, विधायक, डीडवाना

कांग्रेस सरकार के गठन के 11 माह बीत जाने के बाद भी मंत्रिमंडल के सदस्यों में अपना स्वागत सत्कार कराने की इच्छा खत्म नहीं होना आश्चर्यजनक है। अब तो जनता के दु:ख-दर्द मिटाने का समय है। अकाल से जूझ रहे ग्रामीणों से नोटों की माला पहनकर हर्षित हो रहे मंत्री आखिर जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं?

- मनोहरसिंह, पूर्व विधायक, लाडनूं

मंत्री हरजीराम बुरड़क के स्वागत-सत्कार के लिए ग्रामीणों से जबरन एकत्रित की जा रही राशि की जानकारी उन्हें भी मिली है। यह वक्त वाकई ऐसा नहीं है जबकि सरकार का कोई मंत्री गांवों में जाकर इस तरह अपना स्वागत करवाए। इस सम्बन्ध में मुझे जो भी कुछ जानकारी मिली है वह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं कांग्रेस संगठन को भिजवाई जा रही है।

- अंजना शर्मा, कोषाध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस महिला प्रकोष्ठï, लाडनूं

जनता जनप्रतिनिधियों का स्वागत करती रही है, ये तो जनप्रतिनिधि के अपने संस्कार और नैतिकता होती है कि वे जनता द्वारा भेंट की गई राशि में अपनी ओर से कुछ मिलाकर जनसेवा के लिए ही उन्हें वापिस सौंप दें। मंत्री हरजीराम बुरड़क यदि ऐसा नहीं करते हैं तो खेदजनक है।

- लियाकतअली खान, पराजित प्रत्याशी, कांग्रेस, लाडनूं

क्षेत्र के ग्रामीण दौरे पर जनता की ओर से किये गए स्वागत सम्मान की मैं कद्र करता हूं। उनकी ओर से भेंट की गई राशि का देखेंगे क्या करना है।

-हरजीराम बुरड़क, कृषि एवं पशुपालन मंत्री, लाडनूं