दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Friday, October 8, 2010

सुख चाहो तो हो जाओ तैयार

सन्तोष गुप्ता
शहरी विकास के पट खुल गए हैं। अगले दो-ढाई साल में चूरू का रंग-रूप और स्वरूप अदला-बदला सा होगा। वह दिन कैसा होगा? जब चूरू में गंदे पानी की एक भी गैनाणी नहीं होगी। पेयजलापूर्ति निर्बाध और पर्याप्त हो सकेगी। नालियों से पानी का सहज निकास होगा। घरेलू कचरे का उचित प्रबंधन होगा। यातायात सुधरेगा। शहर का फैलाव होगा। नई कॉलोनियां विकसित होंगी। लोगों को शुद्ध और स्वच्छ हवा मिलेगी। शहर साफ और सुन्दर दिखेगा।
चूरू में ऐसा होगा यह जानकार अभी से ही सुखद अहसास होने लगा है। आरयूआईडीपी के माध्यम से शहरी विकास पर करीब 8 8 करोड़ रुपया खर्च होने को है। यह राशि शहर की दशा और दिशा बदल देगी। शहरी ढांचागत विकास के शुरू होने के साथ शहर के सहस्त्रों हाथों को काम मिलेगा। निर्माण कार्य से जुड़े लोगों को व्यवसाय मिलेगा। हर एक की नेक नीयत और नैतिकता यदि शहर के विकास में निहित होगी तो निश्चित ही पीढिय़ों तक दुआएं पाने वाला काम हो जाएगा।
पर यह भी सत्य है कि हर सुख की इमारत दुख के भोग की नींव पर ही खड़ी होती है। चूरू के विकास और नव निर्माण के इस काम में जहां शहरवासियों की जागरुकता जरूरी है वहीं उनका सहयोग भी अपेक्षित है। कोई भी निर्माण सुकून बाद में देता है पहले व्यवधान और बाधाएं सहता है। इस काम में भी बाधाएं आएंगी और व्यवधान भी होंगे। शहर की सड़कें और गलियां खुदेंगी। नालियां मिट्टी से भरेंगी। गंदा पानी सड़कों पर बहेगा। यातायात बाधित होगा। घरों से बाजार तक और बाजार से घर तक आवागमन महीनों तक प्रभावित रहेगा। ग्राहकी में मंदी आएगी। रात की नींद और दिन का सुकून खो जाएगा। इतनी तोडफ़ोड़ होगी। लेकिन शहरवासियों को सब कुछ खुशी से सहना पड़ेगा। इतना ही नहीं यथा योग्य सहयोग भी देना होगा।
यहां चिंता और चिंतन का विषय यह है कि सरकारी प्रक्रिया और लालफीताशाही में सब कुछ उलट-पुलट हो गया।

आरयूआईडीपी पहले पेयजल वितरण प्रबन्धन का कार्य शुरू करने जा रही है। सीवरेज का काम आरम्भ करती तो च्यादा बेहतर होता। उसके पीछे-पीछे ही नई पेयजल लाइन डालने का काम भी शुरू हो जाता। जिससे सड़कों का फिर से निर्माण हो जाता। लोगों को ज्यादा दिन तक आवागमन में परेशानी नहीं भोगनी पड़ती। इसके पीछे तर्कसंगत कारण यह है कि सीवरेज के पाइप, पानी के पाइप से अधिक व्यास के होने व अधिक गहराई में डाले जाने हैं। यदि एक बार सड़क खोद कर पानी की लाइन डाल दी जाएगी तो सीवरेज कार्य में काफी बाधा आएगी। जबकि सीवरेज लाइन को जगह-जगह गली मोहल्लों में होते हुए सीघे घरों से भी जोड़ा जाएगा। शहर की सड़कें और गलियां इतनी चौड़ी भी नहीं हैं कि सीवरेज के लिए खोदी जाने वाली सड़क और पेयजल के लिए खोदे जाने वाले गड्ढ़ों के बीच की दूरी एक-दूसरे काम को प्रभावित न करे।
अब भी प्रशासन और शासन के पास समय है कि वह इस विषय पर यथा शीघ्र विचार करे। सीवरेज कार्य को जितना जल्दी हो सके प्रारम्भ किया जाए। हो सके तो जब तक पेयजल के लिए उच्च जलाशयों का निर्माण हो या पम्पिंग स्टेशन बने तब तक सीवरेज का काम युद्ध स्तर पर शुरू हो जाए।कहीं ऐसा न हो कि पेयजल लाइन डालने का कार्य पूर्ण होने पर सीवरेज का कार्य प्रारम्भ हो। इससे समय, श्रम और धन सब कुछ मिट्टी में चला जाएगा। राच्य के अनेक शहरों में जहां सीवरेज और पेयजल योजनाओं के क्रियान्वयन में समन्वय और तालमेल का अभाव रहा है वहां की जनता आज तक परेशानी भोग रही है और करोड़ों की राशि मिट्टी में मिल गई है। प्रशासन को चाहिए कि वह यह भी सुनिश्चित करे कि सीवरेज और पाइप लाइन डालने के बाद शहर की सड़कें फिर से वैसी ही गुणवत्ता पूर्ण बन जाएं जैसी हाल में हैं। शहर की सड़कों को बने च्यादा दिन नहीं हुुए हैं। वर्षों की तकलीफ भोगने के बाद लोगों को राहत मिली है। शहरवासियों को राहत और शहर का सुकून बना रहे सभी ऐसी उम्मीद करें।
santosh.gupta@epatrika.com