दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Monday, January 10, 2005

दोस्तों, पहाड़ सी जिंदगी, धूप-छांव सा मंजर, उतरती-चढ़ती डगर पर मेरे संवाद का सफर, बहुत से कहे-अनकहे किस्से-कहानियों का स्मृति वन है। इस वन का मैं ही माली हूं और मैं ही मालिक। मुझ से ही यहां विचारों की पौध पल्लवित होती है और भावनाओं के पुष्प खिलते हैं। मुझसे ही महकता है यहां शब्दों का रजनीगंधा और वाक्यों की क्यारियां पुलकित होती हंै। खबरों की बेलों ने यहां मुझ से ही पाया है पानी और मुझ से ही संजोयी है उर्वरकता। टिप्पणियों के नुकीले कैक्टस भी यहां मुझ से ही जन्में हैं। भूली-बिसरी यादों का समन्दर भी समाया है यहां और मुझसे ही रिसती कविताओं के यहां बहे हैं झरने। कंटीली पगडंडियों और पथरीली राहों का रोमांच और अवसाद भरा जाल बिछा है मेरे स्मृति वन में। सहयोगियों के झूठ और साथियों के फरेब की मीलों लम्बी और घनी खरपतवार भी उगी है यहां। अनेक बार मित्रों ने मनाए हैं यहां जश्न और संगियों ने रचे हैं षड्यंत्र। दक्षता के कंडों पर कई बार सिकती रही हैं यहां स्वार्थ की बाटियां। और अवसरवादियों ने मनाई हैं यहां खूब पार्टियां। मेरी उलझन और सुलझन को इसने जाना है। मेरे चलने और बढऩे को इसने पहचाना है। मेरे गिरने और सम्भलने का हुआ है इसे अहसास। मेरे डरने और रोने पर भी करता रहा यह अट्ठहास। मुझ से ही होता है यहां उजियारा मुझ से ही छाती रही रोशनी। मुझ में ही छिपता रहा यहां का अंधियारा मुझमें ही दुबकती रही वीरानी।

दोस्तों, संवाद का सफर साक्षी है मेरी खुशी और मेरे गम का। मेरे गीत और गज़ल का। मेरे मीत और प्रीत का। मेरी तन्हाई और उल्लास का। मेरी मौज और मस्ती का। मेरे अपने और सपने का। मेरे दुश्मन और मेरे दोस्त का। इस सफर पर मुझे सदा ही रहा है इंतजार आप जैसे पाठकों का। मैं खबर लिखूं या करूं टिप्पणी, कविता रचूं या कहूं कहानी चाहता रहा हूं और चाहता रहूंगा तुम्हारी मेहरबानी...।