दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Thursday, January 8, 2009

खर्च का दुगना पाया सुख-3

पत्रिका समूह की सालाना समीक्षा बैठक में पहुंचने का आमंत्रण मिलने के दिन से ही यह सवाल दिमाग में कौंधने लगा कि भीलवाड़ा से कब निकला जाएगा? पुराना अनुभव है रातभर कामकर या सफर कर कॉन्फ्रें स में पहुंचते हैं तो फिर पूरे दिन नींद और आलस में बीत जाता है। तरोताजा नहीं रह पाते। इसलिए शाखा प्रबन्धक जगदीश गुप्ताजी से मैंने आग्रह किया कि हमें एक रात पहले ही पहुंचना चाहिए। हम रात्रि विश्राम जयपुर में ही करें तो बेहतर होगा, ताकि सुबह आठ बजे तक तैयार होकर पिंक पर्ल रिसोर्ट पहुंच सकेंगे।

गुप्ताजी ने भी आग्रह स्वीकार किया। हम छह जनवरी की रात्रि आठ बजे भीलवाड़ा से जयपुर के लिए प्रस्थान कर गए। भीलवाड़ा छोडऩे से पहले गुप्ताजी ने मालवीय नगर कॉलोनी स्थित पत्रिका के गेस्ट हाउस में कमरा बुक करा लिया था। हम सफर में थे। रास्ते में खाते-पीते, बातें करते समय कटने का पता ही न चला। करीब साढ़े बारह बजे हमारी कार पिंक पर्ल रिसोर्ट के बाहर से गुजरी। मेरे दिमाग की घंटी बजी। मन ने कुछ कहना शुरू किया। मन कह रहा था कि जहां पहुंचना है वह स्थल तो आ गया, आगे कहां जा रहे हो? मैंने मन की आवाज सुनी और अपना विचार मैनेजर गुप्ता जी के सम्मुख रख दिया।पत्रकारिता में एक सूत्र यह भी है कि विचारों की भ्रूण हत्या न की जाए। जब भी विचार उपजे उसे कागज पर लिखें अथवा अपने सहयोगियों में साझा कर दें। कहीं कोई अच्छी खबर पक जाए। इस सूत्र के कई बार अच्छे परिणाम मिले हैं ऐसा मेरा अनुभव रहा है। उस रात भी ऐसा ही हुआ। जैसे ही मैनेजर साहब को मैंने कहा कि हमें जयपुर जाकर पत्रिका के गेस्ट हाउस में ठहरना ही है। क्यों नहीं हम एक बार रिसोर्ट के रिशेप्शन पर पता कर लें कि क्या हम आज रात से ही वहां ठहर सकते हैं? मैनेजर साहब एक बार तो तैयार नहीं हुए। हमारी गाड़ी करीब एक किलोमीटर आगे निकल चुकी थी। फिर उन्होंने कहा कि चलो ठीक है, आप ही अन्दर जाकर बात करना। मैंने तुरन्त ड्राईवर को गाड़ी मोडऩे के लिए कहा। अगले पांच मिनट में मैं पिंक पर्ल रिसोर्ट के रिशेप्शन पर था। मैंने अपना परिचय दिया और उनसे पूछा कि क्या मेरे नाम से कोई बुकिंग हैं। रिशेप्शन पर बैठे व्यक्ति ने पूरे शिष्टïाचार के साथ जैसे होटल में आगंतुक का स्वागत करते हैं बताया कि मेरे नाम से कमरा बुक है। मुझे यह भी कहा गया कि घड़ी के अनुसार रात्रि के एक बज चुके हैं। यानि सात जनवरी लग चुकी है। मैं चाहूं तो उस वक्त से ही अपने लिए बुक कराए कमरे का उपभोग कर सकता हूं। रिशेप्शन पर बैठे व्यक्ति के मुख से अपने लिए पूरी तरह अनुकूल जवाब सुनकर मेरा मन नाचने लगा। सफर की सारी थकान चुटकियों में गायब हो गई। मैंने बाहर आकर मैनेजर साहब को बताया कि हम अब जयपुर नहीं जाएंगे। रिसोर्ट में ही रात्रि विश्राम करेंगे। हमारे लिए बुक कराए कमरों का समय शुरू हो चुका है। यानी एक दिन के खर्च पर हम रिसोर्ट में दो रात और दो दिन का लुत्फ उठा सकते हैं। इस सूझबूझ के लिए मैनेजर साहब भी खुश हुए। मुझे सुकून मिला कि अब सुबह जल्दी उठकर तैयार होने की जल्दबाजी नहीं रहेगी। खर्च से दुगुना सुख पाने मौज-मस्ती करने का आनन्द दूसरे नहीं उठा सकेंगे।(एक से तीन इति)-सन्तोष गुप्ता सम्पादकीय प्रभारी,भीलवाड़ा

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