दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Saturday, September 26, 2009

आखिर कब चमकेगा चूरू

कौन हैं शहर के ऐसे हालातों के जिम्मेदार?

चूरू, 25 सितम्बर। हैरिटेज सिटी चूरू की जीवंतता कही खो गई है। जिला मुख्यालय होते हुए भी लोग यहां कस्बाई आबोहवा का सा अहसास करते हैं। शहर में चहुं दिशाओं से प्रवेश के साथ किसी भी आगंतुक को यह महसूस ही नहीं होता कि कस्बे पीछे छूट गए हैं, उन्होंने जिला मुख्यालय में कदम रख दिया है। शहरी चमक-धमक, चहल-पहल, रंग-रौनक कहीं दिखाई नहीं देती। दशकों पुराना ताला जड़ी जर्जर हवेलियां, भरभराकर ध्वस्त होने को आतुर पुरानी इमारतें, दीमकचट पेड़ों के ठूंट, टूटी सड़कें, गंदा पानी उगलती नालियां, अतिक्रमण से अटे बाजार, बेतरतीब यातायात, गंदगी और दलदल से भरे जोहड़, गंदे पानी की निकासी के अभाव में दुर्गंध फैलाती गैनाणियां, बदबू युक्त वातावरण, जगह-जगह कचरे के ढेर, सांड़ों और आवारा मवेशियों का जमघट, गधागाडिय़ों की रेलमपेल, तेज धूप, धूल और धक्कड़ बरबस सोचने को मजबूर कर देता है कि इक्कीसवीं सदी में तेजी से अग्रसर जमाने में चूरू का ऐसा हाल क्यों?आखिर अब नहीं तो कब चमकेगा चूरू? क्या कारण रहे कि विकास की दौड़ में चूरू शहर पिछड़ गया, उपखण्ड आगे निकल गए? कौन हैं शहर के ऐसे हालातों के जिम्मेदार? शहर के नागरिकों का अपने शहर के प्रति कितना है योगदान?

सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कहां रहता है झोल? आदि अनेक सवाल हैं जिनके जवाब हमें नई पीढ़ी को आज नहीं तो कल देने ही होंगे।राजस्थान पत्रिका ने जागो चूरू अभियान के मद्देनजर वार्ड एक से दस तक के क्षेत्रों पर एक नजर डाली तो हाल-ए-नजारा कुछ यूं दिखाई दिया। वार्ड एक में बच्चों के खेलने के लिए पार्क की आवश्यकता है। पार्क के अभाव में बच्चे सड़कों पर खेलते हैं। वार्ड दो में गुंसाई की समाधि के पास बनी गंदे पानी की गैनाणी और गलियों में झूलते विद्युत प्रवाहित तार वार्डवासियों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। वार्ड तीन में सड़क एवं नाली निर्माण की आवश्यकता के साथ पेयजल समस्या है। वार्ड को एक सामुदायिक भवन की भी दरकार है। वार्ड चार में बागला स्कूल का खेल मैदान गंदगी से अटा है, जोहरी सागर के पास गंदा पानी जमा है तथा वार्ड के निचले हिस्से में पेयजल की विकट समस्या है। अल्पसंख्यक बाहुल्य वाले वार्ड पांच में स्कूल का अभाव है। वार्ड छह में संचालित राजकीय विद्यालय नंबर 11 का जर्जर भवन गिरने के कगार पर है। बताया जाता है कि इस विद्यालय में पानी और बिजली का कनेक्शन भी नहीं है। वार्ड सात के लोग कम वोल्टेज और गंदे पानी की गैनाणी की समस्या से परेशान हैं। वार्ड आठ के लोग मस्जिद के निकट गंदगी और कचरे के ढेर से दुखी हंै। वार्ड नौ के लोग वर्षों पूर्व डाली गई पेयजल पाइप लाइन के पन्द्रह फीट नीचे चले जाने से पीडि़त हैं। वार्ड दस के लोगों को मच्छरों ने सता रखा है। वार्ड में जमा गंदे पानी के तालाब की समस्या से हर कोई परेशान है। वार्ड विकास के बारे में वार्डवाससियों से रू -ब-रू होते ही बरबस यही कहते हैं कि बिजली पानी का अभाव, टूटी सड़कें और नालियां से बहता गंदा पानी, ऊंची नीची सड़कें, जगह जगह लगे गंदगी के ढेरों जैसी सामान्य समस्या से उन्हें मुक्ति कब मिलेगी। यूं भी नहीं है कि नगर परिषद, जिला प्रशासन और वार्ड पार्षदों ने वार्डवासियों को इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए, लेकिन प्रभावी कार्ययोजना एवं राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में शहर अब तक शहर दिखाई नहीं देने का दंश भोग रहा है।

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