आस पर भारी प्यास
पानी की गुहार में गले रूंदे
खेत-खलियान
चूरू, 6 अक्टूबर। पानी पर पार पाने के लिए चूरू अब घड़साना की राह पर है। सिंचित क्षेत्र के पानी पर अपने हक के लिए काश्तकारों ने आर-पार की लड़ाई का मानस बनाना शुरू कर दिया है। गांधी जयंती से इसका आगाज हो गया है। तारानगर पंचायत समिति के पुनसीसर गांव में जमा आस-पास के करीब दस-बारह गांवों के दो सौ काश्तकारों ने एकजुटता के साथ संकल्पित होकर अहिंसक तरीके से बड़ा जनआंदोलन छेडऩे की ठान ली है। किसान फिलहाल अपने क्षेत्र में संघर्ष समितियां गठित करने में जुट गए हैं। फसल कटाई के बाद सबसे पहले तारानगर से पानी के लिए जन आन्दोलन शुरू किया जाएगा। इसके बाद चूरू जिला मुख्यालय पर फिर बीकानेर और आखिर में राजधानी जयपुर में धरना-प्रदर्शन किए जाएंगे।किसानों का मानना है कि पानी की गुहार लगाते अब उनके गले रूंद गए हैं। खेत और खलियान पानी की बूंद-बूंद को प्यासे हैं।
नरेगा के चलते गांवों से पलायन कर काश्तकार दो वक्त की रोजी-रोटी का जुगाड़ कर पा रहा है, लेकिन पर्याप्त पानी के अभाव में घर बैठी आधी दुनियां, दम तोड़ती फसलें और पानी को तरसते मवेशियों की चिंता उनके मुंह का निवाला हलक में जाने नहीं देती।काश्तकार इसके लिए शासन और प्रशासन को ही दोषी मानते हंै। बकौल काश्तकार चूरूवासियों को पानी पीने और खेतों को सींचने के लिए अब तक जितनी भी योजनाएं बनी वे या तो अधूरी हैं या राजनीतिक अड़ंगेबाजी में सिरे नहीं चढ़ पा रही हैं।
काश्तकारों ने आंदोलन के पहले चरण में राज्य सरकार से चौधरी कुम्भाराम आर्य लिफ्ट नहर योजना से अविलम्ब रबी की फसल के लिए पानी उपलब्ध कराने की आवाज बुलंद की है। ग्रामीणों का आरोप है कि राज्य सरकार ने चुनावी घोषणा पत्र में उनसे वादा किया था कि वह रबी की फसल के लिए पानी मुहैया कराएंगी जबकि सरकार अब वादा खिलाफी कर रही है।
क्या है योजना
सन 1980 के दशक में बनी चौ। कुम्भाराम आर्य लिफ्ट नहर योजना के तहत करीब 107.8 किलोमीटर मुख्य नहर सहित करीब एक हजार किलोमीटर लम्बी व छोटी वितरिकाएं बनाई जानी थी। इससे लगभग दो लाख चालीस हजार हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के लिए करीब दो क्यूसेक पानी सालाना छोड़ा जाना प्रस्तावित था। सन 1984 में योजना के आरम्भ से लेकर अब तक गुजरे पच्चीस वर्षों में करीब 376 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है जबकि योजना से जिले के किसानों को एक आने भर भी सिंचाई का लाभ नहीं मिल सका है। हालात तो यह है भविष्य में कब तक लाभ मिल सकेगा यह भी भविष्य के ही गर्भ में है जबकि नए सिंचित क्षेत्र भी खोले जाने प्रस्तावित हैं।
किसे मिलना है लाभ
चौधरी कुम्भाराम आर्य नहर योजना से हनुमानगढ़ जिले के टीबी, नोहर, भादरा तथा चूरू जिले सरदारशहर, व तारानगर विधानसभा क्षेत्रों के लाखों काश्तकारों को लाभ मिलना था। नहर रावतसर, हनुमानगढ़ कस्बे के धन्नासर कैचियां क्षेत्र से जीरो किलोमीटर से शुरू होकर तारानगर,चूरू के १०७ किलोमीटर पर अंतिम छोर तक पहुंचनी है।
क्या है मौजूदा स्थिति
योजना के तहत मुख्य नहर सहित करीब 483.56 किलोमीटर लम्बाई में वितरिकाएं बनाई जा चुकी हैं। इनसे करीब एक लाख दो हजार छह सौ बाइस हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई संभव हो सकती है। लेकिन चूरू जिले के तारानगर विधानसभा क्षेत्र स्थित रैयाटुण्डा, पुनरास, भूरावास, भांमरा व कैलाश माइनरों के हैड रेगूलेटरों के गेट लगाने शेष होने,इसके अलावा सरदारशहर विधानसभा क्षेत्र स्थित सूंई बांध के 17किलोमीटर पर करीब 26मीटर का एक खांचा पुल संभाल के लिए छोड़ दिए जाने। इसकी लाईनिंग शेष रहने से जिले के काश्तकारों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। बकौल राज्य सरकार यह कार्य इसी वर्ष में पूर्ण किया जाना प्रस्तावित है। इसके साथ ही नया सिंचित क्षेत्र भी खोला जाना प्रस्तावित है।
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कुम्भाराम नहर योजना राजनीतिक अड़ंगेबाजी में लम्बित है। किसान सिंचाई के लिए ही नहीं बल्कि पीने के पानी को भी तरस रहा है। सरकार ने जल्द सुनवाई नहीं की तो जन-आन्दोलन करेंगे।
- गजानंद तिवारी, काश्तकार, पुनसीसर
योजना के कार्य को पूरा कराने के लिए अब जो भी बलिदान देना होगा देंगे। योजना को बीस साल हो गए। अब इंतजार नहीं होता।
- तोलाराम शर्मा, काश्तकार, पुनसीसर
गांधी जयंती पर ही मीटिंग रखी थी। तारानगर विधायक राजेन्द्र राठौड़ को बुलाया था। गांव-गांव में घूम कर पानी के लिए संघर्ष समितियां बना रहे हैं। अब आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे।
- नरसीराम, काश्तकार, मेहरासर उपाधियान
फण्ड मैच होना चाहिए पर्याप्त
धन उपलब्ध नहीं होने के कारण योजना की समयावधि बढ़ जाती है इससे लागत भी बढ़ जाती है। कुम्भाराम आर्य नहर योजना भी ऐसी ही स्थिति से गुजर रही है। जहां सौ करोड़ रुपया चाहिए वहां दस करोड़ रुपया मिल पाता है। इस हाल में तो योजना अगले बीस साल में भी पूरी होना मुश्किल है।
- कुलदीप विश्नोई, अधिशासी अभियंता, जलदाय विभाग, बीकानेर
कांग्रेस कर रही है पानी की राजनीति
पिछले चार दशक से कांग्रेस सिंचाई के पानी की राजनीति कर रही है। गहलोत सरकार ने काश्तकारों से सिंचित क्षेत्र में पानी देने का वादा किया था अब सरकार इससे मुकर गई है। सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। वसुंधरा सरकार के समय जारी 14 करोड़ की निविदाएं गहलोत सरकार ने आते ही रोक दी। यही नहीं रबी फसल से पानी देने का भरोसा दर्शाकर प्रस्ताव जल वितरण समिति को प्र्र्र्रस्तुत कर दिया गया। इससे पानी मिलना और टल गया। योजना पर करोड़ों रुपया खर्च हो चुका है अब कुछ लाखों का काम बाकी है। इसे शीघ्र पूरा कराया जाना चाहिए। सरकार की किसान को राहत देने की नीयत ही नहीं है।
- राजेन्द्र राठौड़, विधायक तारानगर
गति बढ़ाए जाने के प्रयास हो रहे हैं
बांध में पानी की कमी के कारण कुछ शिथिलता आई है। सरकार के स्तर पर कुछ निर्णय भी होने है। काम की गति भी घीमी है, इससे नहर का डैमेज भी बढ़ रहा है। तमाम विषयों को ध्यान में रखते हुए योजना के शीघ्र ही पूरा होने के लिए उसकी गति बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए सरकार को लिखा जा रहा है।- डा। केके पाठक, जिला कलक्टर, चूरू
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