सन्तोष गुप्ता
चुनाव प्रचार का शोर-शराबा थम गया है। भौंपुओं का मुंह बंद हो गया है। सभाओं की जोड़-तोड़ घट गई है। रैलियों की दौड़-धूप मिट गई है। कार्यकर्ताओं का रूठना-मनना लगभग खत्म सा हो गया है। दोस्त-दुश्मनों में मान-मनौव्वल का दौर भी पट गया है। मनाने वाले थके से दिखाई देने लगे हैं। मानने वाले कम ज्यादा ले-देकर मान गए हैं। उम्मीदवारों ने गंभीरता ओढ ली है। चाल-चलन में शालीनता ढाल ली है। उनके चेहरे की मुस्कान समर्थकों की भीड़ के अनुपात में घटने-बढऩे लगी है।
इसका एक कारण यह भी है कि मतदाता ने उम्मीदवार को जान लिया है। उम्मीदवारों ने समर्थकों को पहचान लिया है। जिसको जो कहना था उसने वह कह लिया है। जिसे जो सुनना था उसने वो सुन लिया है। अब किसी के पास न गिले शिकवे रहे न शिकायत बची है। सिर्फ शहर से प्रेम का इजहार बाकी है। सोमवार को मतदान के मद्देनजर उलटी गिनती शुरू हो गई है।शहरवासियों के लिए शहर से प्रेम के इजहार का समय आ गया है। कहते हैं प्रेम को शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। प्रेम को अनुभूत किया जाता है। प्रेम के परिपक्व होने की कामना की जाती है। शहरी समस्याओं से निजात और शहर के विकास की खातिर शहर से प्रेम करने वालों के लिए २३ नवम्बर का दिन किसी 'वेलेंटाइन-डेÓ से कम नहीं है। उन्हें यह सुनहरा मौका यूं ही नहीं गंवाना है। घर से मतदान केन्द्र की दूरी चाहे जितनी हो, सर्द हवाएं चाहे खूब ठिठुराएं, पारिवारिक परेशानियां कदम रोकें पर शहर से प्रेम का इजहार करने से ठिठकना नहीं है। निर्भिकता से घर से निकलना है और एक नहीं एक साथ दो को चुनना है। अब तक मतदाता अपने वार्ड के प्रतिनिधि को चुनता था। फिर वह प्रतिनिधि अपने नेता को चुनता था। इस बार मतदाता शहर के प्रथम नागरिक और वार्ड प्रतिनिधि दोनों का चुनाव एक साथ करेगा। इसलिए मतदाता की दोहरी जिम्मेदारी हो गई है। उसे चौंकन्ना रहना होगा। सोचना समझना और फिर चुनना होगा।अब तक जो हुआ वह सामान्य था। इसमें नया कुछ भी नहीं। ऐसा पहले से होता आया है। लेकिन अब जो भी कुछ होगा वह दोनों के लिए खास रहेगा। उसके लिए जिसे चुना जाना है, विशेष है ही। जिन्हें अपने शहर के विकास के खातिर योग्य नेता चुनना है, उनके लिए कुछ ज्यादा विशेष है। उन्हें तो चौतरफा सजगता और सतर्कता बरतने की जरूरत होगी। अगले चौबीस घंटों में जिसे चुना जाना है वह अपने समर्थकों को और समर्थक अपने मिलने-जुलने वालों को रिझाएंगे। उनका मत पाने को उन्हें ललचाएंगे भी। घर-घर देवरियां ढोक लगाएंगे। रिश्ते-नाते गिनाएंगे। पुरानी दोस्ती भुनाएंगे। गाहे-बगाहे किए अहसान याद दिलाएंगे। सौगात और भेंट भी दी जा सकती है। पंगत में लंगर और बस्ती में बक्से बांटे जा सकते हैं।
यही वह स्थिति होगी जब मतदाता अवसरवादियों की बनाई हवा में बह सकता है। क्षणिक लाभ और मोह में बिक सकता है। प्रत्याशी के लुभावने वादों और शहद लिपटी बातों में जकड़ सकता है। मतदाता को विचार करना होगा कि उसकी जरा सी भूल न सिर्फ उसे बल्कि शहर को पांच साल तक भुगतनी पड़ सकती है। शहर से प्रेम में दीवाना हुआ जा सकता है, प्रेम में अंधा बना जाए यह शहर को गंवारा न होगा।
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