दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Thursday, October 15, 2009

'अंकुश' के बिना कैसे कसे शिकंजा

पुलिस डाल-डाल, माफिया पात-पात

अवैध शराब माफिया का फैलता जाल

चूरू, 14अक्टूबर। समान नीति और साफ नीयत के अभाव में जिले में अवैध शराब माफिया का पेट और पैठ गजराज की तरह बढ़ता ही जा रहा है। इस पर शिंकजा कसने के लिए आबकारी विभाग और आबकारी निरोधक दल के हाथ में 'अंकुशÓ (स्टाफ व संसाधन ) तक नहीं है। शराब के अवैध कारोबार की रोकथाम के लिए राज्य में करीब डेढ़ सौ थाने हैं, लेकिन आधे से ज्यादा खाली पड़े हैं। चूरू जिले में ही अकेले राजगढ़ वृत से जिले भर में कार्रवाई की जा रही है। शेष तीन थानों में अधिकारी नहीं है। स्थिति यह है कि कहीं अधिकारी है तो स्टाफ नहीं, कहीं स्टाफ है तो अधिकारी का टोटा। सिविल पुलिस महकमे के हालात भी कुछ कम नहीं है, उसके लिए शराब के अवैध कारोबार की रोकथाम अव्वल तो प्राथमिकता में नहीं आती। पुलिस के पास अपने ही बहुत काम हैं। फिर जहां कहीं शराब के अवैध कारोबारी सक्रिय हैं वहां पुलिस सक्रियता ही नहीं दिखाती है। अवैध शराब की धरपकड़ के आए दिन दर्ज होने वाले मुकदमे पुलिस और आबकारी विभाग की कागजी खानापूर्ति भर हंै। जबकि शराब के अवैध कारोबारियों के हौंसले इतने बुलन्द हैं कि पुलिस जहां डाल-डाल चलती है वहां वे पात-पात पनप रहे हैं। राज्य की शराब नीति ने इसमें चांदी की बरक का ही काम किया है। इनकी धर-पकड़ में पुलिस के कमजोर पड़ते इकबाल का ही नतीजा है कि गैंगवार होने लगी हैं। कारोबारी रंजिश के चलते सरेराह दहशतगर्दी ने कानून एवं शांति व्यवस्था को चुनौती देनी शुरू कर दी है।

नीति में ही है खोट

मोटेतौर पर देखा जाए तो इसके लिए राजस्थान की आबकारी नीति भी कुछ हद तक जिम्मेदार है। यहां शराब कारोबारियों के लिए दुकान पाने की कीमत कम है और शराब महंगी है। जबकि पड़ोसी राज्य हरियाणा, पंजाब में दुकानों के आवंटन की कीमत अधिक व शराब सस्ती है। राजस्थान में तो देशी शराब के लिए प्रतिमाह का कोटा आवंटित होता है। अंग्रेजी व बीयर बेचने के लिए कोई कोटा नहीं है। ऐसी स्थिति में बोर्डर से जुड़े गांवों में लोगों ने शराब के कारोबार को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है। मात्र पच्चीस हजार रुपए सलाना जमाकरा कर देशी शराब के ठेके पर ही अंग्रेजी और बीयर बेची जाने लगी है। इसकी सीमा नहीं होने का नतीजा है कि पड़ोसी राज्य से सस्ती शराब लाकर धड़ल्ले से बेची जा रही

डीजल भी है सस्ता

पड़ोसी राज्यों में शराब ही नहीं डीजल भी सस्ता है। सीमा क्षेत्र में रहने वाले लोग डीजल भराने के लिए हरियाणा, पंजाब जाते है और लौटते समय शराब लेकर आ जाते है। इससे उन्हें भारी मुनाफा होने लगा है। डीजल में प्रति लीटर करीब तीन से चार रुपए का फायदा है वहीं शराब की एक बोतल पर करीब पचास से साठ प्रतिशत का लाभ है। लोगों ने इसे कमाई का सबसे सस्ता और सरल धंधा मानकर अपनाना शुरू कर दिया

मुनाफे ने पनपाए माफिया

अधिक मुनाफा होने से शराब के अवैध कारोबारी पनप गए। जो लोग पहले साथ में काम किया करते थे उन्हीं में से अलग हुए सदस्यों ने अलग से कारोबार शुरू कर दिया। इससे अलग-अलग गैंग बन गई। एक दूसरे के क्षेत्र में सप्लाई को लेकर दुश्मनी होने लगी। नतीजा रहा कि आपसी रंजिश में सरेराह दहशत गर्दी बढ़ गई। पिछले दिनों सादुलपुर में हुआ संजय नायक हत्याकाण्ड, रतनगढ़ में मकान पर चली गोलियां ऐसे ही पनपी गैंग की करतूत

पक्की सड़कों ने दी गति

केन्द्र व राज्य सरकार की ग्राम सम्पर्क सड़क योजनाओं के तहत हर छोटा बड़ा गांव पक्की सड़कों से जुड़ गया है। काश्तकारों के पास चौपहिया वाहन भी हैं। हालात यह है कि सस्ते और सरल शराब कारोबार से जुड़े लोग गांव ही गांव की सड़कों से निकल कर पड़ोसी राज्य में घुस जाते हैं और शराब और डीजल भर कर ले आते

तलाशी सम्भव नहीं

आबकारी निरोधक दल व आबकारी विभाग के पास पर्याप्त स्टाफ के अभाव में बड़े शराब माफियाओं की धर-पकड़ संभव ही नहीं होती। पुख्ता सूचना के अभाव में बड़े वाहनों को राष्ट्रीय राजमार्गों पर रोककर उनकी तलाशी नहीं ली जा सकती। शराब के बड़े अवैध करोबारी वाहनों का राष्ट्रीय राजमार्गों से गुजारते समय आगे-पीछे वाहन लगाकर पूरी रैकी करते रहते हैं। पुलिस व आबकारी दल की अपेक्षा उनका सूचना तंत्र मजबूत होने से वे मार्ग बदल-बदल कर अपने गंतव्य तक पहुंच जाते हैं और पुलिस हाथ मलते रह जाती है। तलाशी के दौरान कभी-कभाव वे पुलिस पर हमला करने से भी नहीं चूकते हैं।

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भाजपा सरकार पर शराब नीति को लेकर प्रहार करने वाली कांग्रेस शराब के अवैध कारोबारियों की सरपरस्त बनी हुई है। पड़ोसी राज्यों की तुलना में शराब पर वैट ज्यादा है। शराब महंगी होने से शराब के अवैध कारोबारियों की फौज बढ़ गई है। पुलिस व आबकारी दल के पास न तो स्टाफ है न पेट्रोलिंग के लिए संसाधन। पूरे राज्य में शराब कारोबारियों ने कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखा रखा है।- राजेन्द्र राठौड़, विधायक, तारानगर
आबकारी निरोधक दल शराब के अवैध कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। पुख्ता सूचना होने पर पूरी घेरे बंदी के साथ कार्रवाई की जाती है। किन्तु कारोबारियों का संचार तंत्र तेज है। फिर आम जनता भी अवैध कारोबारियों को पकड़वाने अथवा शराब के अवैध ठिकानों का पता बताने में साथ नहीं देती।- गोविन्द सिंह देवड़ा, उप निदेशक आबकारी निरोधक दलपुलिस ने शराब के अवैध कारोबारियों पर अंकुश के लिए थानेदारों को निर्देशित किया है। स्पेशल टीम भी बनाई है। पिछले एक सप्ताह में हुई कार्रवाई इसी का नतीजा है। संसाधन व स्टाफ का भी अभाव है। अब अवैध शराब के पकड़े जाने पर सिर्फ चालक के खिलाफ ही कार्रवाई करने के बजाय उसके असली मालिक को भी मुकदमें में नामजद किया जा रहा है।

- अनिल कयाल, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, चूरू

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