दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Sunday, February 22, 2009

बद अच्छा बदनाम बुरा

सन्तोष गुप्ता

भीलवाड़ा। बहुत पुरानी कहावत है बद अच्छा, बदनाम बुरा। मतलब यह कि खूबसूरती चेहरे के बजाय आचरण से पहचानी जाती है। यही बात विभागीय कामकाज के नजरिए से देखें तो विभाग भलें ही अच्छा हो उसका कार्य व्यवहार और कार्य संस्कृति ही उसके अच्छे और खराब होने का आईना होती है। पब्लिक डीलिंग से जुड़े महकमे अमूमन अपने कामकाज को लेकर ही बदनाम हैं। परिवहन महकमा भी उनसे अछूता नहीं। समय-समय पर ऐसे बहुत से किस्से प्रदेश भर में सामने आते रहे हैं जब चंद अवसरवादी और लालची कर्मचारियों की कारगुजारी से समूचे महकमे को शर्र्मिंदगी उठानी पड़ी है। वाहन चालकों का लाइसेंस जारी करना हो या वाहन परमिट, वाहन का फिटनेस देना हो या रजिस्ट्रेशन नम्बर कोई न कोई आरोप-प्रत्यारोप लगा ही है।बदनामी तो जैसे इस महकमे पर छाया की तरह उसके आगे चलती है। बेगूं के विधायक राजेन्द्रसिंह विधूड़ी को राह चलते दो सौ रुपए की सेवा बताने की घटना अखबारों की सुर्खियां क्या बनी लोगों को यह मानने और समझने में देर नहीं लगी कि ऐसा ही हुआ होगा। परिवहन महकमे के आला से लेकर अदने से अफसर ने भरे चौराहे शर्र्मिंदगी महसूस की। खाकी वर्दी का रंग और रुआब तो एसीबी के पाउडर लगे नोट की तरह धुलकर उतर गया। वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर वसूली के लक्ष्य पूरे करने को लेकर महकमे की कार्य व्यवस्था लडख़ड़ा गई। अब भले ही परिवहन महकमा सफाई में जो कहे उसकी साख पर आंच तो आ ही गई।कौन नहीं जानता राजनीति के हीरो विलेन के हाथों शिकस्त खा भी जाए तो अपने धनबल-भुजबल और छलबल से फिर प्रभाव जमाने में कसर नहीं छोड़ते। लोकतंत्र में लोकसेवक को कानून हाथ में लेने के यह अधिकार दिए किसने? अजमेर के पुलिस अधीक्षक पर विधायक के थप्पड़ की गूंज कई दिनों तक सुनी जाती रही। पीडब्ल्यूडी, विद्युत, जलदाय विभाग,नगर परिषद और न्यास के अभियंताओं व कर्मचारियों के साथ तो ऐसी बदसलूकी आम बात है। ऐसा लगता है सत्ता का मद सिर चढ़कर बोलने लगा। वरना बेगूं के विधायक भी इतने परेशान नहीं होते। ओवरलोड वाहनों की जांच हो या अवैध वाहनों की घरपकड़। यातायात पुलिस या परिवहन महकमे का जब भी अभियान चलता है तो सड़क पर जाम लगना तो आम बात होती है। आम आदमी तो जाम में चौतरफा पिस जाता है। श्रम,समय और र्ईंधन सभी गंवाना पड़ता है। लोकजीवन का यही यथार्थ है। लोक सेवक थोड़ा संयम और धैर्य का परिचय देते तो अवरुद्ध मार्ग उनके लिए सुगम और सहज होते देर नहीं लगती। यूं भी एक बात तो विचारणीय है कि आलीशान गाड़ी में सुरक्षागार्ड के साथ बैठे किसी भद्र पुरुष से भला कौन मूर्ख सेवा करवा कर अपनी और महकमे की भद पिटवाएगा। सत्य को कुछ समय के लिए झुठलाया जा सकता है, मिटाया नहीं जा सकता। अब भले ही सरकार ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं। परिवहन आयुक्त ने जांच भी शुरू कर दी है। घटना को लेकर प्रत्यक्षदर्शी भी सामने आने लगे हैं। जांच की सांच का खुलासा जब होगा तब होगा। तब तक परिवहन महकमा चौराहे पर शर्र्मिंदगी झेलता रहेगा। परिवहन महकमे को भी चाहिए कि वह अपनी कमजोरियों को भी जांचे। कामकाज में पारदर्शिता लाए। यदि उपनिरीक्षक का कहा सत्य पाया जाता है तो फिर बिना किसी दबाव के लोकसेवक और उसके फरमाबरदार के विरुद्ध भी वैसी ही विधि सम्मत कार्रवाई अमल में लाई जाए। सरकार को भी सोचना है। सत्ता के मद में चूर लोकसेवक भले जनता के काम करे न करे पर सार्वजनिक रूप से अपने आचार-व्यवहार से ऐसा कृत्य न हो जिससे लोकसेवक का मान और लोगों में वर्दी का विश्वास और रुआब कम न हो।

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