दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Monday, November 23, 2009

आओ चुन लें खुद को

स्थानीय निकाय चुनाव का बिगुल बज गया है। राजनीतिक सरगरर्मियां बढऩे लगी है। गली-मोहल्ले, नुक्कड़-चौपाल, सड़क-बाजार हर ओर चुनावी रंगत जमने लगी है। राजनीति में वर्षों से रमे और राजनीति में रमने के इच्छुक आपस में जुडऩे लगे हंै। चाय की थड़ी हो या कलेक्ट्री के बाहर लगा दाल-पकोड़ी का ठेला। चुस्की और चटकारे के साथ हर कोई चुनावी चर्चा में रमा है। धवल वस्त्र पहने जहां-तहां नमस्कार की मुद्रा में खड़े दिखाई देने वालों पर तो टिप्पणियां होने लगी हैं। कै...भाईजी थे भी लडरिया हो कै...कठे सूं.... ऐसी आवाज तथाकथित नेताजी के कानों में पड़ते ही उनके चेहरे की मुस्कराहट दोगुनी हो जाती है। टिप्पणी करने वाला उनका आलोचक है कि समर्थक, निन्दक है कि शुभचिंतक वे नहीं जानते। वो तो बेशक मुस्कुरा के आगे बढ़ गए, टिप्पणी करने वाले के लिए बात यहां खत्म नहीं हुई बल्कि यहां से शुरू हो गई। चाय की थड़ी पर बैठे-बैठे नेताजी का भूत-भविष्य और वर्तमान पढ़ा और गढा जाने लगा। सम्भवत: वे यह भूल गए कि धवल वस्त्रधारी ने तो खुद को समाज के लिए प्रस्तुत कर अपने साहस और समर्पण का सद्भाव पूर्ण प्रदर्शन भर किया है। उसे नेता बनाना या न बनाने का अधिकार तो उन्हीं के हाथ में है। खैर, यह मानवीय स्वभाव है। इसे न रोका जा सकता है न टोका जा सकता है। लोकतंत्र की व्यवस्था ही कुछ ऐसी है। यहां खुद कुछ करो या ना करो। सामने वाले पर टीका-टिप्पणी करो या सराहना आपके विचार अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की हर हाल में रक्षा होगी। चूरू के लिए यह उत्थान का समय है। उठने का समय है। जागने का समय है। न सिर्फ जागने का बल्कि जागते हुए भविष्य संवारने का समय है। इसे जिला मुख्यालय का दर्जा भले ही दशकों पूर्व मिल गया हो पर जिला मुख्यालय होने का सा गौरव वह अब तक नहीं पा सका है। चूरू में निसंदेह काफी विकास हुआ, यह कोई नहीं नकारता। फिर भी अन्य जिलों से चूरू पिछड़ा हुआ है, यह हर कोई स्वीकारता है। बमुश्किल एक साल हुआ जबकि चूरू को यहां की आबादी और विकास के मद्देनजर नगरपालिका से नगरपरिषद में क्रमोन्नत किया गया। नगरपरिषद का दर्जा पाकर शहरवासियों की उम्मीद जागी। अपेक्षाएं बढ़ीं। चूरू को अन्य शहरों सा दिखने और देखने की तमन्ना हुई। लेकिन बीते साल में शहर की फिजां और फितरत कितनी बदल पाए? कितने नेता और नौजवान इसके लिए आगे आए। मूलभूत सुविधाओं के अभाव और अभियोगों पर किसने आवाज उठाई? चूरू में क्या-क्या नया जोड़ पाए? गंदे पानी की निकासी की समस्या दूर होना तो दूर क्या उसके निराकरण की ठोस योजना भी बना सके। सड़कों का समतलीकरण भले न कर सके हो क्या गुणवत्ता पूर्ण एक भी सड़क बना सके। पीने के पानी का एकत्रीकरण और शुद्धिकरण की क्या किसी ने सुध ली। शहरी सौंदर्यीकरण और पर्यावरणीय अनुकूलन की दृष्टि से ठोस कचरा प्रबंधन का कभी विचार किया। सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक समृद्धता की कभी पहल हुई। रोजगार और औद्योगिकीकरण पर किसने कितना ध्यान दिया। खेत और खलिहानों का क्या क्षमतानुकूल उपभोग हो सका।... देखलेस्यां...... करलेस्यां.... होजासी.....कीहोसी....के बंटै....जैसे जुमले जुबान से निकले और जेब में पड़ी गुटखे की पुडिय़ा मुंह तक पहुंची...हो गया बस।...मुंह बंद।सेठ, साहूकारों, धनपतियों की पुश्तैनी इमारतों और हवेलियों के होने, साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने, अतीत पर ही मुस्कराते रहने से ही कुछ होता तो गुजरे बरसों में बहुत कुछ हो जाता। जिस शहर की कारोबारी हलचल आज भी गधा रेहडिय़ों पर घिसट रही हो, नौजवान अच्छा पढऩे-लिखने को पड़ोसी जिले की ओर झांकते हों और रोजी-रोटी कमाने विदेश पलायन कर जाते हों, जहां एक प्याली चाय और ऑटो में शहरभर में कहीं भी आने-जाने का खर्च एकसा मात्र पांच रुपल्ली हो, जहां सूर्य अस्त होते ही व्यापारी कारोबार समेटने लगते हों, मजदूर औजार छोड़ देता हो और रेहड़ी वाला पशु खोल देता हो वहां की दिशा और दशा बदलने के लिए निश्चित ही कोई कर्मवीर और धर्मवीर चाहिए। विशेष तौर पर उस दौर में जबकि आधी दुनिया को राजनीति में पंचायती करने का आधा हक मिल गया है। खास तौर पर तब जबकि सभापति और पालिकाध्यक्ष का चयन सीधे आमजन को करना है। चाय और पकोड़ी के साथ थडिय़ों पर बैठकर बतियाने और हथेली पर तम्बाकू चुर्रट रगड़ते रहने का वक्त अब नहीं रहा। समय करवट ले रहा है। आप भी उठ खड़े हों। आंखें खोलें। कुछ कर गुजरने को हाथ-मुंह धोलें। कैसा चूरू चाहते हैं आप? किससे मेल खाता है आपका विचार? किसके पास है आपकी कल्पना को साकार करने की क्षमता? कौन दे सकता है आपको सही नेतृत्व? मतदान का दिन २३ नवम्बर पलक झपकते आ जाएगा। किसी और को चुनने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करें उससे पहले जरूरी है कि आप खुद को चुनें। किसके पक्ष और समर्थन में आप खुद को खड़ा देखना चाहते हैं। किसे अपना तन-मन-धन से समर्थन देना चाहते हैं। किसके हाथों में शहरी विकास की डोर सौंपना चाहते हैं।आपके दर पर कर्मवीर, धर्मवीर, धनवीर, बलवीर आदि चुनावी रणवीरों की अब शुरू होगी दस्तक। चूरू आपका है। चुनना आपको है। निर्णय आपका है।

No comments:

Post a Comment