दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Tuesday, November 24, 2009

विश्वास पाना अभी शेष है

चूरू।शहरवासियों ने शहरी सरकार चुन ली। चुनाव नतीजों के रूप में लोकतंत्र के इस महायज्ञ की पूर्णाहुति हो गई। नतीजे सबके सामने हैं। अपनी सरकार चुनने में शहरवासियों ने पूरा श्यानापन दर्शाया। अपनी सूझबूझ और परिपक्वता का परिचय दिया। तुम जीते न मैं हारा की तर्ज पर सटीक फैसला सुनाया। जनता के मन मंदिर से कोई छिटका तो किसी ने प्रसाद पाया। चुनावी वैतरणी पार करने की जद्दोजहद में जुटे पैंंतालीस वार्ड प्रत्याशियों में से बाईस का जनता ने हाथ थाम लिया तो बीस के हाथों में कमल का फूल थमा दिया। जिन तीन वार्डों में निर्दलियों ने जनता का आशीर्वाद पाया वे व्यवहार और व्यक्तित्व के धनी थे। निवर्तमान सभापति रमाकांत ओझा को तो जनता के दरबार से धक्का लगा। गोविन्द महणसरिया ने प्रसाद पा लिया।जनता जनार्दन की यही खासियत है। यही लोकतंत्र की मजबूती। जनता कब किसी को तख्तेताज सौंप दे कब किसी के पैर के नीचे बिछी जाजम खींच ले। कांग्रेस से सभापति पद के उम्मीदवार गोविन्द महणसरिया का निर्वाचन कुछ ऐसा ही रहा। कांग्रेस के सिपाही के रूप में उनकी वर्षों की साधना का उन्हें प्रसाद मिल गया। शहरवासियों के लिए वे एक ऐसी शख्सीयत बनकर उभरे जिसे लेकर स्वयं उनकी जमात के लोग आशंकित थे। टिकट वितरण को लेकर उपजे असंतोष ने बाजार में उनकी हवा बिगाड़ रखी थी। रही सही कसर बागियों के रूप में चुनाव मैदान में ताल ठोकने वालोंं ने पूरी कर दी थी। इस बार राज योग उनकी ही हथैली पर लिखा था। इसी लिए हाजी मकबूल को गोविन्द कबूल था। मकबूल का मतलब होता है जो अच्छा उसे ग्रहण करो। गोविन्द के नाम की तो जनता वैसे ही दीवानी है। उसे कबूल करने में जनता ने जरा भी भूल नहीं की। गोविन्द महणसरिया को जनता ने ठीक वैसे प्रसाद पकड़ाया जैसे मंदिर में लगी भीड़ में सबसे पीछे खड़े किसी भक्त का भगवान ने स्वयं उठकर हाथ थाम लिया हो। यह महणसरिया के लिए तो विचारणीय है ही, जनता का पुन: विश्वास पाने से पिछड़े रमाकांत ओझा के लिए चिंतन और मंथन का विषय भी।पर कहते हैं कि राजनीति में भगवान रूपी जनता भी उसी भक्त का साथ निभाती है जो कर्म में विश्वास करता है। दीनहीन-गरीब पर उपकार करता है। निशक्त और असहायों को सम्बल देता है। कत्र्तव्यों को समझता है और दायित्वों को निभाता है। जो राम और रहीम को बराबर का दर्जा देता है। जिसकी करनी और कथनी में भेद नहीं होता। जिसके आचरण में शुद्धता और चरित्र में स्वच्छता बसती है। जिसकी वाणी में मिठास और व्यवहार में सौम्यता रमती है। जो हर खास और आम के सुख-दुख में उसके साथ होता है। जो अपने और पराए में भेद किए बिना घर-परिवार, मोहल्ला और समाज, राज्य और राष्ट्र धर्म की पालना करने में संतुलन बनाए रखता है।शहर के प्रथम नागरिक के रूप में चुने जाने पर गोविन्द महणसरिया की तथा वार्ड प्रतिनिधि चुने जाने पर प्रत्येक पार्षद की अगले पांच वर्षों के लिए यही भूमिका होनी चाहिए। जनता का मत तो उन्हें मिल गया। विश्वास पाना अभी शेष है।

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