दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Thursday, January 21, 2010

ऐसी भी क्या जल्दी है

आज हर किसी को जल्दी है। खाते-पीते, उठते-बैठते, सोते-चलते सब फटाफट हो बस। कोई भी धैर्य और संयम रखना नहीं चाहता। मैं पिछले दिनों घर से दफ्तर के रास्ते पर था। रास्ता थोड़ा सकड़ा था। यूं मान लो कि एक तरफा था। मेरे स्कूटर के आगे एक सज्जन अंतिम यात्रा पर थे। उनके पीछे सैकड़ों लोग चल रहे थे। मैं थोड़ा ठिठक गया। स्कूटर के ब्रेक लगा कर गति धीमी कर ली। उनके पीछे हो लिया। कमोबेश हर कोई आपस में बतियाता हुआ ही चल रहा था। जैसे जरूरी बात करने का इससे बेहतर मौका उन्हें पहले नहीं मिला और शायद बाद में भी नहीं मिले। इतने में मेरे नजदीक से स्कूल का छात्र पिता की दिलाई मोटरसाइकिल पर पूरी रफ्तार से गुजरा। पिता की दिलाई मैं इसलिए कह सकता हूं कि उसके पीछे लिखा था डेडीज-गिफ्ट। उसने हॉर्न देकर लोगों को एक तरफ होने की हिदायत दी। लेने-देन के हेर-फेर की गुफ्तगू में मशगूल लोगों को क्या पड़ी कि छात्र के दिए हॉर्न पर कान धरते। उसे स्कूल पहुंचने की जल्दी थी। छात्र जैसे-तैसे अपने लिए जगह निकाल कर आगे बढ़ गया। मैं सोचता रहा कि इस अंतिम यात्रा से भी आगे कोई निकल सकता है? कल की ही खबर थी राजगढ़ में ट्रेन से आगे निकलने के प्रयास में जीप में सवार सात लोगों की मौत हो गई। सभी लोगों को अपने रिश्तेदार के यहां शोक व्यक्त करने पहुंचने की जल्दी थी। एक सप्ताह पहले ही निकटवर्ती चूरू-रतननगर मार्ग पर जीप में सवार आठ लोगों के सड़क दुर्घटना में प्राण पखेरू उड़ गए। वे रिश्तेदार के यहां शोक व्यक्त कर घर लौटने की तेजी में थे। आज फिर सूचना मिली कि राजगढ़ में हडिय़ाल के निकट सड़क दुर्घटना में तीन जनों की मौत हो गई। ये सभी चुनाव के चलते मतदाताओं तक मदिरा पहुंचाने की जल्दी में थे। नए साल के अब तक गुजरे बीस दिनों में ऐसी पांचवीं सूचना है जब तेजी से आगे निकलने की चाह में लोग अपने घर के बजाय भगवान के घर पहुंच गए। बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं सभी के लिए चिंता और चिंतन का कारण है। विशेष तौर पर उनके लिए जिन्हें यातायात नियंत्रण के लिए पेशेगत जिम्मेदारी सौंप रखी है। उन्हें इस काम का मेहनताना मिलता है। लिहाजा उनका कत्र्तव्य भी बनता है और धर्म भी। यातायात पुलिस हो या परिवहन महकमे के कारिंदे इस ओर तनिक भी ध्यान दें तो हादसों में काफी कमी हो सकती है। सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जाना लोगों को जागरूक करने के लिए अच्छा प्रयास हो सकता है। किन्तु ड्यूटी पर रहते हुए सजगता और सतर्कता बरतने का कौन सा सप्ताह मनाया जाए यह समझ से परे है? ओवरलोड वाहनों का सरपट सड़कों पर दौडऩा। अवैध वाहनों का संचालित होना। छोटी उम्र के बच्चों को बड़े वाहन चलाते देखा जाना। गति सीमा से तेज चलते वाहनों को नहीं रोकना किसकी कमजोरी जाहिर करती है। गश्ती पुलिस, हाइवे पुलिस, मोटरसाइकिल राइडर, स्पेशल फ्लाईंग, आदि जाने कितने स्क्वायड बने हुए हैं। ऐसे हालात देखकर कहा जा सकता है कि सभी आंख बंद रखने की ही नौकरी कर रहे हैं। खुली आंखों के सामने कुछ हो तो उन्हें क्या पड़ी है।वैसे सफर में जोखिम का ख्याल रखना सफर करने वाले का पहला धर्म है। लोगों को भी चाहिए कि इस बात को समझे कि दुर्घटना से देर भली। वाहन में क्षमता से अधिक बैठना और चालक को जल्दी पहुंचने की कहना समय और धन की बचत करा सकता है, जीवन के जोखिम से छुटकारा नहीं दिला सकता।

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