दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Thursday, March 18, 2010

उपभोक्ता जानता सब है पर जागता नहीं

सन्तोष गुप्ता
चूरू। देश का हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में उपभोक्ता है। उपभोक्ता होने के नाते उसके पास कुछ अधिकार भी हैं तो कत्र्तव्य भी। उपभोक्ता है कि वह सब जानता है पर फिर भी अपने अधिकारों के लिए जागता नहीं।
सूचना एवं जनसंचार क्रांति के दौर में दुनिया के तमाम बाजार मुट्ठी में सिमट आए हैं। दुनियाभर की उपभोग वस्तुओं को मोल-भाव और खरीदारी व्यक्ति अंगुलियों से बटन दबा कर घर बैठे कर सकता है। आलपिन से लेकर हवाईजहाज तक व्यक्ति की हथेली पर है। उसे तो बस अपना हित और अहित देखते हुए और समझते हुए उसके क्रय-विक्रय या उपभोग का निर्णय करना है। जुबान हिली नहीं कि उपभोग के लिए वांछित सामग्री उसकी आंखों के सामने होती है। खरीदारी में पहले जैसा जटिल और कठिन भी कुछ भी नहीं रहा। पर यह जितना आसान हो गया है उतना ही आंखों का धोखा खाना और उपभोक्ता का ठगा जाना बढ़ गया है। सजगता और सतर्कता में जरा भी चूक हुई नहीं कि वहीं धोखा खा गए।
उपभोग की वस्तुओं में गला काट प्रतिस्पर्धा के चलते उपभोक्ता को सही और गलत का, असली और नकली का, सस्ते और महंगे का, शुद्ध और अशुद्ध का सहजता से भान होना ही मुश्किल हो गया है। यही कारण है कि केन्द्र और राज्य सरकार ने उपभोक्ता के अधिकारों की रक्षा के लिए समय-समय पर कई येाजनाएं बनाई हैं। अभियान चलाए हैं। प्रचार-प्रसार के लिए शहरी और ग्रामीण स्तर पर विज्ञापन जारी किए हैं। रैली आयोजन, गोष्ठी, संगोष्ठी, परिचर्चा, सभाओं के माध्यम से हर आम उपभोक्ता को उसके अधिकार बताने और समझाने का प्रयास किया है। फिर भी जहां-तहां देखा जा सकता है कि उपभोक्ता के अधिकारों के प्रति आम शहरी उतना सजग और सतर्क नहीं है जितना उसे होना चाहिए। जान कर हैरानी हुई कि उपभोक्ता के अधिकारों के प्रति शहरी शिक्षित वर्ग ही ज्यादा अनदेखी बरत रहा है। ग्रामीणजन उतने ही जागरूक हुए हैं। यह बात दीगर है कि उपभोक्ता का शोषण रोकने व उसे उसका अधिकार दिलाने के लिए वर्ष 198 6 में बने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की उसे जानकारी नहीं है। जानकारी है भी तो वह उसका उपयोग नहीं करता है। दो दशक से अधिक समय बीत गया उपभोक्ता में जागरुकता का अभाव इस स्तर पर है कि आज भी हजारों उपभोक्ता छोटी-मोटी खरीदारी पर ही अवसरवादियों के हाथों शोषण का शिकार हो रहे हैं। मैंने जानना चाहा तो पता चला कि बहुत से लोग तो यह समझ नहीं पाते उसके अधिकार क्या हैं। उनके लिए बताना जरूरी है कि जो व्यक्ति किसी भी वस्तु या सेवा का उपयोग करता है, वह उस वस्तु या सेवा का उपभोक्ता होता है। हर उपभोक्ता को अपने अधिकार प्राप्त है। जो व्यक्ति व्यापारिक प्रयोजन अथवा पुन: बिक्री के प्रयोजन से खरीदता है तो वह उपभोक्ता नहीं है। लेकिन कोई व्यक्ति स्व-रोजगार के जरिए जीविका कमाने के प्रयोजन से वस्तुएं खरीदता है तो वह एक उपभोक्ता है।
जोरदार बात तो यह है कि बच्चे को पढ़ाने वाला शिक्षक बच्चे को सही नहीं पढ़ाता है, समय पर नहीं पढ़ाता है या फिर गलत पढ़ाता है तो भी उपभोक्ता कानून उसे शोषण से राहत दिला सकता है । बच्चा जिस स्कूल में पढ़ रहा वह स्कूल शिक्षण शुल्क दस माह की बजाय बारह माह का वसूल कर रही है। शिक्षण संस्था विकास शुल्क वसूल कर रही है। दुकानदार खाद्य वस्तुओं में मिलावट करता है। निर्धारित मूल्य से अधिक वसूल कर रहा तो भी उपभोक्ता कानून का उपयोग कर शोषण से बचा जा सकता है। इसके अलावा उपभोक्ता का व्यापारी, कंपनी, एवं आवश्यक सेवाओं से जुड़े सरकारी विभागों द्वारा शोषण किया जाता है अथवा उसे अधिकारों से वंचित किया जाता है तो भी उपभोक्ता के अधिकारों की रक्षा के लिए मंच उपभोक्ता संरक्षण का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। जरूरत इस बात की है कि उपभोक्ता संरक्षण कानून का लाभ आम उपभोक्ता को दिलाने के लिए सरकार की ओर से कोई निशुल्क सहज और सुलभ व्यवस्था होनी चाहिए। इससे व्यक्ति बिना किसी अतिरिक्त दबाव के मंच तक अपनी शिकायत पहुंचा सके। दूर-दराज ग्रामीण क्षेत्र का उपभोक्ता तो मंच तक शिकायत में लगने वाले हर्जे-खर्चे और समय-श्रम साध्य परेशानी के झंझट में पडऩे से घबराता है। वह आवेदन करने, अभिभाषक को खोजने में ही विचार त्याग देता है।

3 comments:

  1. आपकी यह पोस्‍ट आज दिनांक 25 मार्च 2010 को दैनिक जनसत्‍ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्‍तंभ में जानना और जागना शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई।
    आप हिन्‍दी के मार्ग आने वाली वर्ड वैरीफिकेशन रूपी बाधा को निष्क्रिय करेंगे तो अच्‍छा लगेगा।

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  2. बात तो आपकी सही है, रही बात उपभोक्ता अधिकारों की तो यदि उपभोक्ता जागरूक है तथा अदालतों के चक्कर लगाने में सक्षम है तो वह अवश्य यह दिखा सकता है कि उपभोक्ता के हकों को छीनने वालों को जुर्माना भी हो सकता है। अन्यथा शोषित होते रहो। अफसर जानते हैं कि आम जनता तो अज्ञान की गहरी नींद में है, राजनेताओं से उन्होंने तालमेल बिठा ही रखा है, फिर उनका कोई क्या कर सकता है।

    यदा कदा कोई हम-तुम जैसा पीछे पड ही जाये तो सबसे पहले तो उसकी अक्ल ठीक करने के सारे हथकण्डे अपनाये जाते हैं। यदि वह दबता नहीं है, तो उसे भी अपनी जमात में दलाल के रूप में शामिल कर लिया जाता है। इसके बाद भी अपवाद स्वरूप कुछ शेष रह जाते हैं, जिनसे सतर्क रहने का प्रयास किया जाता है। फिर भी बेचारे यदकदा एसीबी के चक्कर में फंस ही जाते हैं।

    प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों में जिस प्रकार की साठगांठ है, उसको देखते हुए प्रशासन को उनके कर्त्तव्य याद दिलाने मात्र से कुछ भी हासिल नहीं होगा, बल्कि जनता (पब्लिक) को अपने आप में अतनी ताकत हासिल करनी होगी कि इन भ्रष्ट पब्लिक सेर्वेण्ट्‌स से पूछा जा सके कि वे अपने कर्त्तव्यों के प्रति लापरवाह क्यों हैं और लापरवाही के लिये सजा दिलाने के लिये संघर्ष का मार्ग अख्तियार करना होगा। यदि पब्लिक अपने नौकरों अर्थात्‌ पब्लिक सर्वेण्ट्‌स को नियन्त्रित नहीं रख सकती तो कहीं न कहीं पब्लिक भी इसके लिये जिम्मेदार है। आपने अच्छा मुद्दा उठाया है। धन्यवाद।

    शुभकामनाओं सहित आपका
    -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश
    सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है।
    इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, सरकार या अन्य किसी से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३५६ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६

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  3. तलाश जिन्दा लोगों की ! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
    =0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=

    सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

    (सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
    राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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