सन्तोष गुप्ता
चूरू। चूरू के वातावरण में अब घुटन होने लगी है। इसका साफ दिखाई देता कारण शहर के प्राय चहुंओर बढ़ती जा रही गंदे पानी की गैनाणियां हैं। उनसे उठती दुर्गन्ध ने हवाओं को भी बदबूदार कर दिया है। गैनाणियों के आस-पास से गुजरना तो अपना जी खराब करना है। मुंह पर रुमाल रखे बिना तो कोई निकल ही नहीं पाता। गैनाणियों के इर्द-गिर्द बसे लोगों का तो जीना ही मुहाल हो चला है।
दुर्गन्ध युक्त श्वांस लेना तो उनकी नियति बन गई है। गंदे पानी की गैनाणियों में पलते-पनपते मच्छर-मक्खियों ने भी उन्हें परेशान कर रखा है।घरों के खिड़की दरवाजे तक बंद रखने पड़ते हैं। ऐसे में वह ताजा हवा और धूप से भी वंचित हो गए हैं। कुछ परिवारों ने तो हिम्मत जुटाकर अपने घर बदल लिए हैं किन्तु हर कोई ऐसी हिम्मत नहीं कर पा रहा।
शहर के जनप्रतिनिधियों से लेकर जिला प्रशासन के आला अधिकारी तक सब इस समस्या से वाकिफ हैं किन्तु करता कोई कुछ नहीं। ऐसा नहीं कि गंदे पानी का उपयोग नहीं हो सकता। योजनाएं हैं पर उस दिशा में कभी विचार नहीं किया गया। इस मोहल्ले का पानी उस मोहल्ले में लेजाकर छोडऩे तक की जद्दोजहद में ही जनप्रतिनिधि उलझे रहे। ऐसे मेंं गंदे पानी में आवश्यक दवाई डलवाने अथवा समय-समय पर उसकी सफाई करवाने तक भी किसी का ध्यान नहीं गया। स्थिति तो यह है कि किसी ने गैनाणियों का आकार सीमित रखने का भी विचार नहीं किया।
नतीजा रहा कि छोटी गैनाणी भी अब विशाल तालाब का सा रूप लेने लगी हैं।अब तो गैनाणियां शहरवासियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालने लगी हैं बल्कि हेरिटेज सिटी कहे जाने वाले चूरू शहर के सौन्दर्य पर भी ग्रहण लगा रही हैं। नगर परिषद प्रशासन, शहर के जनप्रतिनिधि, जिला प्रशासन को इस संबन्ध में सामूहिक बैठकर विचार करना चाहिए। ऐसा नहीं कि इस समस्या का कोई ठोस हल नहीं निकाला जा सकता।
चांद पर पानी की खोज की जा चुकी है तो क्या धरती पर गंदे पानी का इस्तेमाल किए जाने की कोई युक्ति सुझाई नहीं दे सकती। दे सकती है। मैं तो कहता हूं है भी। पर जरूरत है इस विषय में साझा सोच और ठोस प्रयास की। ऐसा हुआ तो चूरू में एक दिन इसी गंदे पानी से न सिर्फ बिजली बनाई जा सकती है अपितु पानी का ट्रीटमेंट कर उससे खेती और हरियाली पनपाई जा सकती है। फिर दुर्गन्ध घुटन नहीं देगी।
चूरू। चूरू के वातावरण में अब घुटन होने लगी है। इसका साफ दिखाई देता कारण शहर के प्राय चहुंओर बढ़ती जा रही गंदे पानी की गैनाणियां हैं। उनसे उठती दुर्गन्ध ने हवाओं को भी बदबूदार कर दिया है। गैनाणियों के आस-पास से गुजरना तो अपना जी खराब करना है। मुंह पर रुमाल रखे बिना तो कोई निकल ही नहीं पाता। गैनाणियों के इर्द-गिर्द बसे लोगों का तो जीना ही मुहाल हो चला है।
दुर्गन्ध युक्त श्वांस लेना तो उनकी नियति बन गई है। गंदे पानी की गैनाणियों में पलते-पनपते मच्छर-मक्खियों ने भी उन्हें परेशान कर रखा है।घरों के खिड़की दरवाजे तक बंद रखने पड़ते हैं। ऐसे में वह ताजा हवा और धूप से भी वंचित हो गए हैं। कुछ परिवारों ने तो हिम्मत जुटाकर अपने घर बदल लिए हैं किन्तु हर कोई ऐसी हिम्मत नहीं कर पा रहा।
शहर के जनप्रतिनिधियों से लेकर जिला प्रशासन के आला अधिकारी तक सब इस समस्या से वाकिफ हैं किन्तु करता कोई कुछ नहीं। ऐसा नहीं कि गंदे पानी का उपयोग नहीं हो सकता। योजनाएं हैं पर उस दिशा में कभी विचार नहीं किया गया। इस मोहल्ले का पानी उस मोहल्ले में लेजाकर छोडऩे तक की जद्दोजहद में ही जनप्रतिनिधि उलझे रहे। ऐसे मेंं गंदे पानी में आवश्यक दवाई डलवाने अथवा समय-समय पर उसकी सफाई करवाने तक भी किसी का ध्यान नहीं गया। स्थिति तो यह है कि किसी ने गैनाणियों का आकार सीमित रखने का भी विचार नहीं किया।
नतीजा रहा कि छोटी गैनाणी भी अब विशाल तालाब का सा रूप लेने लगी हैं।अब तो गैनाणियां शहरवासियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालने लगी हैं बल्कि हेरिटेज सिटी कहे जाने वाले चूरू शहर के सौन्दर्य पर भी ग्रहण लगा रही हैं। नगर परिषद प्रशासन, शहर के जनप्रतिनिधि, जिला प्रशासन को इस संबन्ध में सामूहिक बैठकर विचार करना चाहिए। ऐसा नहीं कि इस समस्या का कोई ठोस हल नहीं निकाला जा सकता।
चांद पर पानी की खोज की जा चुकी है तो क्या धरती पर गंदे पानी का इस्तेमाल किए जाने की कोई युक्ति सुझाई नहीं दे सकती। दे सकती है। मैं तो कहता हूं है भी। पर जरूरत है इस विषय में साझा सोच और ठोस प्रयास की। ऐसा हुआ तो चूरू में एक दिन इसी गंदे पानी से न सिर्फ बिजली बनाई जा सकती है अपितु पानी का ट्रीटमेंट कर उससे खेती और हरियाली पनपाई जा सकती है। फिर दुर्गन्ध घुटन नहीं देगी।
सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करें...जन प्रतिनिधियों के माध्यम से.
ReplyDeleteसटीक लिखा है, आभार
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