दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Tuesday, December 22, 2009

निर्दलियों ने बनाया मुकाबला रोचक

प्रमुख संगठन भितरघात के फ्लू से पीडि़त

मौजूदा तथा पूर्व विधायक की प्रतिष्ठा दांव पर

कुल मतदाता- 74 हजार 369

पुरुष मतदाता-39 हजार ४०१

महिला मतदाता-34 हजार 968

नए मतदाता-10 हजार ३८२

पिछला मतदान प्रतिशत-72

(नगर पालिका चुनाव)

चूरू, 22 नवम्बर। निर्दलियों की मौजूदगी ने चूरू नगरपरिषद सभापति का चुनाव त्रिकोणीय और रोचक बना दिया है। निर्दलियों को मिलने वाले मत प्रमुख पार्टी प्रत्याशियों के हार-जीत का अंतर तय करते दिखाई दे रहे हैं। मुख्य रूप से यहां कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी में कांटे की टक्कर है। कांग्रेस में जहां विधायक हाजी मकबूल मण्डेलिया की प्रतिष्ठा दांव पर है तो भाजपा में पूर्व मंत्री एवं तारानगर विधायक राजेन्द्र राठौड़ की पैठ। दोनों ही संगठन भितरघात के फ्लू से भी आशंकित है। यह बात दीगर है कि जहां कांग्रेस प्रत्याशी गोविन्द महणसरिया की जीत के लिए विधायक हाजी मकबूल मण्डेलिया और ऑल इण्डिया हैण्डीक्राफ्ट बोर्ड के उपाध्यक्ष रफीक मण्डेलिया ने दिन-रात एक कर दिए हैं। लेकिन प्रत्याशी के चयन में पार्टी के जुझारू कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ने संगठन की एकजुटता में खटास ला दी है। वहीं भाजपा प्रत्याशी रमाकांत ओझा को जिताने में राजेन्द्र राठौड़ ने चूरू की गली-गली नाप दी है। लेकिन मतदाता है कि वह अपने मन की पाती किसी को पढऩे नहीं दे रहा। ऐसे हालात में चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे निर्दलीय प्रत्याशी और कांग्रेस के बागी गौरीशंकर मण्डावेवाला, मोहम्मद असलम खान, सलीम गुर्जर, संतकुमार सारस्वत, कैलाश चंद्र तथा सीपीएम के रमजान खान को मिलने वाले मत और दोनों ही प्रमुख पार्टियों में संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं की सोमवार को मतदान के दिन सक्रियता ही प्रत्याशियों की दिशा और पार्टी की दशा तय

क्या कहता है अतीत

चूरूवासियों ने स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार सन 1971 से लेकर 1992 तक करीब बीस साल चूरू में नगर परिषद हुआ करती थी। आबादी का सीमांकन बढऩे से चूरू परिषद का दर्जा घट गया। सन् 2008 अक्टूबर तक चूरू में नगरपालिका बोर्ड रहा। 7 अक्टूबर को चूरू नगरपालिका को फिर से क्रमोन्नत कर नगर परिषद का दर्जा दिया गया। इस तरह पालिकाध्यक्ष रमाकांत ओझा ही नगर परिषद की दूसरी पारी के पहले सभापति हो गए। इससे पहले पालिका बोर्ड में अध्यक्ष गौरीशंकर मण्डावेवाला रहे। यह चुनाव वे निर्दलीय के रूप में जीते थे। बोर्ड अध्यक्ष बनने के लिए उन्होंने भाजपा सदस्यता स्वीकार कर ली थी। आज से करीब तीन साल पहले मण्डावेवाला पार्टी बदलकर कांग्रेस में शामिल हो गए। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उनका कांग्रेस से भी मोहभंग हो गया। नतीजतन वर्तमान स्थानीय निकाय चुनाव में उन्होंने दोनों ही पार्टी प्रत्याशियों के विरुद्ध निर्दलीय के रूप में ताल ठोककर मुकाबला रोचक व त्रिकोणीय बना दिया।

- भाजपा प्रत्याशी

रमाकांत ओझा

क्या है ताकत

बेदाग छवि

कुशल व्यवहार

जातिगत आधार

संगठन से जुड़ाव

सभापति पद का अनुभव

क्या है कमजोरी

सभापति पद पर रहते स्वाभाविक नाराजगी

भाजपा बागी होने का दाग

कांग्रेस प्रत्याशी

-गोविन्द महनसरिया

क्या है ताकत

राज्य में कांग्रेस सरकार

कांग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता

विधायक का वरदहस्त

बेदाग छवि, मिलनसार

अल्पसंख्यकों का समर्थन

क्या है कमजोरी

कांग्रेस के बागी की मैदान में मौजूदगी

मतों का विभाजन

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