दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Wednesday, December 23, 2009

जनअपेक्षाओं पर कुठाराघात

सन्तोष गुप्ता

नगरपरिषद पर काबिज कांग्रेस बोर्ड की पहली साधारण सभा की बैठक में मंगलवार को जो हुआ उस पर शहरवासियों को अफसोस है। जनता की उम्मीद और अपेक्षाओं पर तो जैसे कड़ाके की ठंड में घड़ों पानी पड़ गया। साधारण सभा में जनप्रतिनिधियों का व्यवहार किसी भी दृष्टि से शोभनीय नहीं रहा। शिष्टाचार और संजीदगी की तो जैसे चिंदी-चिंदी होकर रह गई। अनुशासन की धज्जियां उड़ गई। सदन की गरिमा का रत्तीभर भी ख्याल नहीं रखा गया। सभापति के सीधे निर्वाचन और आधी दुनिया को आधा हक दिए जाने के बाद यह माना जा रहा था कि अब सदन में शांति और शालीनता का बोलबाला रहेगा। महिला जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी सदन में पुरुष सदस्यों के व्यवहार को मर्यादित, संजीदा और संस्कारिक बनाएगी। जनप्रतिनिधि चाहे वह पक्ष का हो या विपक्ष का शहर हित में त्वरित निर्णय करने में साझा समझ का परिचय देंगे। शहरी विकास और सौंदर्यीकरण की योजनाओं के क्रियान्वयन में किसी तरह की अड़चन नहीं होगी। मंगलवार को आहूत साधारण सभा में जो हुआ वह जनअपेक्षाओं के विपरीत ही रहा। जनप्रतिनिधियों में एक दूसरे के विरुद्ध तू-तड़ाक से वार्तालाप हुआ। महिला जनप्रतिनिधियों के साथ धक्का-मुक्की की गई। कुर्सियां उठाकर फेंकने की कोशिश हुई। इतना ही नहीं किसी प्राथमिक स्कूल के बच्चों की तरह जनप्रतिनिधि मेजों पर चढ़कर चीखे-चिल्लाए। अधिकारी के हाथ से दस्तावेज छीन कर फाड़ दिए गए। सदन में बेहूदगी की हद तो तब पार हुई जब धक्का-मुक्की के बीच ही महिला जनप्रतिनिधियों के साथ अभद्रता कर दी गई। महिला जनप्रतिनिधियों का जिला कलक्टर से मुलाकात कर उनके साथ हुई अभद्रता की शिकायत करना अत्यंत गम्भीर चिंता और चिंतन की बात है। यहां यह भी विचारणीय है कि जनता के अकूत मत और अटूट विश्वास के बूते चुने सदन में ऐसी नौबत ही क्यों आई? इसे सदन चलाने वालों की अपरिपक्वता कहें या सांगठनिक कमजोरी। होना तो यह चाहिए था कि सदन में नवनिर्वाचित सभापति साधारण सभा की बैठक बुलाने से पहले पक्ष और विपक्ष के प्रतिनिधियों को विश्वास में लेकर साझा प्रस्ताव तैयार करते। सदन में शहरी विकास को लेकर वे अपना पांच साला दृष्टिकोण रखते। नगरपरिषद की माली हालत से सदन को अवगत कराया जाता और आय बढ़ाने के लिए चुने गए प्रतिनिधियों से ही सुझाव लिए जाते। परिषद के साधन-संसाधन बढ़ाने और शहरी समस्याओं को प्राथमिकता से निस्तारित करने की रूपरेखा तैयार की जाती। पहली साधारण सभा के एजेण्डे में विवादित प्रस्तावों का रखा जाना राजनीतिक सूझबूझ की कमी को ही नहीं परिषद में पदस्थापित प्रशासनिक कारिंदों की निष्पक्ष बुद्धिमता पर भी सवाल खड़े करने वाली है। बहरहाल, अभी तो शुरुआत है, सदन में हुई गलतियों से सबक लिया जाए तो अगली बैठकों में शहरवासियों का हित साधा जा सकता है।

santosh.gupta@epatrika.com

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