दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Thursday, December 24, 2009

कौन भुगतेगा खामियाजा

सन्तोष गुप्ता

नैतिक और सामाजिक मूल्यों ने निरंतर आ रही गिरावट आखिर कहां जाकर थमेगी यह विचार अब लाजिमी हो गया है। शिक्षा जैसे पवित्र पेशे में नैतिक मूल्यों क हृास समाज के हर व्यक्ति के लिए चिंतनीय है। दो दिन पहले दसवीं कक्षा की अद्र्धवार्षिक परीक्षा का गणित का परचा आउट होने की खबर कानोंकान शहर में तैर रही थी। शिक्षा विभाग के आला से अदना अधिकारी ने इस पर कान नहीं धरे। समाचार पत्रों में इससे संबंधित समाचार सुर्खियों में साया हुए परन्तु शिक्षा अधिकारियों ने इस पर भी गौर नहीं किया। मामला चूंकि दसवीं की अद्र्धवार्षिक परीक्षा का था इसलिए संभवतया शिक्षा अधिकारियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसके पीछे तर्क यह हो सकता है कि इस परीक्षा से परीक्षार्थी के सालाना परिणाम पर कोई असर नहीं होना था। परीक्षार्थियों को भी सिर्फ बोर्डपरीक्षा परिणाम से मतलब है इसलिए न अध्ययनरत परीक्षार्थी बोले न ही उनके अभिभावकों ने भंग हुई गोपनीयता के विरुद्ध मुंह खोला। बुधवार कक्षा नौ के गणित द्वितीय का प्रश्न पत्र लीक होने की चर्चा सुबह नौ बजे से जंगल में आग की तरह शहर में फैली। जिरोक्स की दुकानों व स्टेशनरी के व्यापारियों ने तो आवाज लगा कर बीस रुपए प्रति कॉपी की दर से सैकड़ों विद्यार्थियों को प्रश्न पत्र बेच डाले। इस हालत को देखकर जागरूक नागरिक का जमीर जाग गया। नैतिकता के पतन की हद उसे देखी नहीं गई। उसने पत्रिका को फोन पर इसकी सूचना ही नहीं दी सुबह पौने दस बजे तक प्रश्न पत्र की एक जिरोक्स प्रति पत्रिका कार्यालय पर भी पहुंचा दी। अब यह जांच का विषय हो सकता है कि प्रश्न पत्र लीक कहां से हुआ? किसने, किस लालच में गोपनीयता भंग की? शासन-प्रशासन उसे सजा भी दे देगा। पर सवाल यह उठता है कि इसका खामियाजा भुगतेगा कौन? उन विद्यार्थियों के समय और श्रम की क्या कीमत होगी जिन्होंने दिनरात एक कर मेहनत की और परीक्षा दी। उनके अभिभावकों ने जाड़े के दिनों में रातों की नींद और दिन का सुकून ताक पर रखकर बच्चों को पढ़ाया। घर खर्च में कटौती कर उन्हें ट्यूटोरियल कक्षाओं में भेजा। नतीजा क्या रहा? चंद अवसरवादी विद्यार्थियों अथवा एक दो समाजकंटकों के कारण समान परीक्षा से जुड़े करीब छह सौ विद्यालयों के दो लाख से अधिक बच्चों की मेहनत पर पानी फिर गया। परीक्षा जैसे मामले में गोपनीयता बरती जाना समाज की सामूहिक जिम्मेदारी होती है। यह जिम्मेदारी प्रश्न पत्र बनाने वाले शिक्षक से शुरू होकर उसके मुद्रित होने, वितरण के लिए लिफाफा बंद होने तथा परीक्षा केन्द्र तक सुरक्षित पहुंचने तक उसे छूने वाले उन सभी हाथों की है जो व्यक्ति उससे जुड़ा है। इसमें से किसी भी स्तर पर रही मामूली त्रुटि समय, श्रम और धन की बर्बादी का कारण बन जाती है। पहले भी ऐसी ही घटनाएं हुई हैं। प्रश्न पत्र आउट करने वाले पकड़े गए, सजा भी हुई पर घटना की पुनरावृति नहीं रुकी? सोचा यह जाना है कि क्या दो लाख बच्चों की परीक्षा दोबारा कराना ही इसका एक मात्र विकल्प और हल हो सकता? इसमें पढऩे वाले मेहनत करने वाले बच्चों का दोष क्या है? खता कोई करे सजा कोई भुगते क्या इसे न्याय संगत कहा जा सकता? परचा आउट करने वाले, कराने वाले और बेचने वाले सभी को शीघ्र बेनकाब कर इस समाजिक अपराध की सख्त से सख्त सजा निर्धारित तो होनी ही चाहिए। विद्यार्थियों के हित में किसी और विकल्प पर भी विचार होना चाहिए जिससे समय, श्रम और धन की बबार्दी से बचा जा सके।santosh.gupta@epatrika.com

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