दोस्तों, आज मैं खुश हूं। यह खुशी आपसे मुलाकात की है। इस मुलाकात के लिए मैं पिछले लम्बे समय से चाहत रख रहा था। चाहत अब से चंद सैकंड पहले ही पूरी हुई। अगले हर पल आप लोगों का सुखद सान्निध्य पाता रहूं ऐसी कामना है। मैं चाहता हूं कि मैंने अब तक जो किया, जो मैं कर रहा हूं और जो मैं करना चाहता हूं। उसे ब्लॉग के जरिए आप सभी से साझा कर सकूं। मुझ में हर नए दिन की शुरुआत के साथ कुछ नया करने की ललक रहती है। उसे शिद्दत से पूरा करने की जद्दोजहद में हर दिन करना होता है...सच का सामना। ये ब्लॉग ऐसी ही सच्चाइयों से अब आपकों भी कराता रहेगा रू-ब-रू।

Thursday, December 31, 2009

रिश्तों में ले आएं गरमाहट

इक्कीस वीं सदी के पहले दशक के अंतिम बरस का पहला दिन हमारी देहलीज पर आ खड़ा हुआ है। बीते पल और नए क्षण के बीच भला कभी कोई फासला रहा है? हर ढलती सांझ पर नई सुबह की इबारत लिखी होती है। हमें तो उसे पढऩा और ईश्वर के भेजे संदेश को समझना भर होता है। निरंतर बदलते समय की नजाकत को समझते हुए जो आगे बढ़ गया वही मंजिल पा गया। जो पिछड़ गया वह वहीं ठहरा रह गया। जीवन एक सफर ही तो है। सफर यानि गतिवान बने रहना। चलते रहना। पल-पल आगे बढ़ते रहना।

कुछ नया करते रहना।याददाश्त पर ज्यादा जोर ना भी दे तो भी याद आ जाता है जब हमने आज ही कि तरह वर्ष 1999 को अलविदा कहा था और वर्ष 2000 का गर्मजोशी से स्वागत किया था। नई सोच, नए इरादे, नया ख्याल और नवीन जज्बा हमारे दिलो-दिमाग में उमडऩे-घुमडऩे लगा था। सदी के पहले दशक के नए साल की शुरूआत नए लक्ष्य और संकल्प के साथ करने की चाहत जवां हो उठी थी। आज फिर वैसा ही अवसर है। वैसी ही महफिल सजी है। अपने आस-पास कमोवेश वैसा ही नहीं तो थोड़ा-बहुत बदला हुआ मंजर है। वैसा ही समां। थोड़ा गौर से देखें तुम्हें चाहने वाले यहां कितने हैं? कौन शेष है जो तुम्हारा शुभचिंतक है? किसे तुम दावे के साथ अपना कह सकते हो? कौन है जो तुम्हारा हाथ थाम कर दस कदम तुम्हारे साथ चलने को राजी है? कौन है जो तुम्हारी गलती पर मुस्कराता नहीं संबंल देता है? तुम्हारी उत्कृष्ट सेवाओं का खुद श्रेय नहीं लेता तुम्हे शाबासी देता है।

इक्कीसवीं सदी का यह दशक विकास के पथ पर निश्चित ही बहुत तेजी से आगे बढ़ गया। अदने से आला तक ने तरक्की पा ली। कई निरक्षर से साक्षर हो गए। जो कल तक नासमझ थे आज समझदार हो गए। अज्ञानियों ने ज्ञानवान होने का दर्जा पा लिया। जो दलवान थे वे धनवान हो गए। धनवान भी देखते - देखते बलवान हो गए। अब तक जो पैदल फिरा करता था वह कार वाला हो गया। कार वाला बड़े रसुकात वाला हो गया। पीछे छूटा तो बस छोटों को प्यार और बड़ों का सम्मान, दोस्तों की मोहब्बत और सहेलियों की प्रीत, रिश्तेदारों से अपनापन और पड़ोसियों से नजदीकियां, पारिवारिक सरोकार और सामाजिक सद्भाव, मातहतों से समभाव और प्रतिद्वंद्वियों से सौहार्द, गरीब के प्रति संवेदना और सेवा में वफादारी, पर्यावरण से जुड़ाव और जीवों से लगाव, माटी की खुशबू और रोटी की मिठास।

खैर, आज मौका भी है और अवसर भी सोचो और संकल्प करो कामकाज की व्यस्तता में भी अपनो को समय दे सको, बुजुर्गों पर अपनापन लुटा सको। पड़ोसियों से मधुरता निभा सको। रिश्तेदारों की नजदीकियां पा सको। अधिकारियों का विश्वास हासिल कर सको। मातहतो पर भरोसा कर सको। नौकरी पर निष्ठा बहाल रख सको। दोस्तों से वफा कर सको। पानी को सहेजे रख सको। पर्यावरण से प्रीत कर सको। जीवों को प्यार दे सको। निर्बल को सम्बल और गरीब में संवेदना बांट सको। सोचो, कुछ ऐसा कर सको कि रिश्तों में फिर से गरमाहट भर सको। नया साल मंगलमय हो।

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